बुधवार, 19 सितंबर 2018

न्याय का हिसाब

न्याय का हिसाब

जब जब मुझे छोटा बनाया गया
मेरे तजुर्बे के कद को बढ़ाया गया

जब जब हँसकर दर्द सहा
तब तब और आजमाया गया ,

समझने के वक्त समझाया गया
क्या से क्या यहां बनाया गया ,

न्याय का भी अजीब हिसाब रहा
गलत को ही सही बताया गया ।

ज्योति सिंह

आदमी


शीर्षक  --आदमी

मुनाफे के लिए आदमी
व्यापार बदलता है,

खुशियों के लिए आदमी
व्यवहार बदलता है ,

ज़िन्दगी के लिए आदमी
रफ्तार बदलता है ,

देश के लिये आदमी
सरकार बदलता है ,

तरक्की के लिए आदमी
ऐतबार बदलता है,

दुनिया के लिए आदमी
किरदार बदलता है ।

और इसी तरह
बदलते बदलते

एक रोज यही आदमी
ये संसार  बदलता है ।

ज्योति सिंह

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

हमेशा आगे रहूंगी

तुम अपनी आदते बदल दो

मैं अपने इरादे बदल दूंगी ,

तुम अपनी जिद्द छोड़ दो

मैं जीने की वजह दे दूंगी ,

तुम अपने कदम बढ़ाओ

मैं चलने की हिम्मत दे दूंगी ,

तुम अपने हाथ बढ़ाओ

मैं बढ़कर  थाम  लूँगी  ,

मैं नारी हूँ ,रहती पीछे हूँ

पर जब - जब  जरूरत पड़ी

आगे रही हूँ  और

हमेशा आगे रहूंगी  ।

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

अधूरे रहे

फिर से बच्चा बनना है
बड़े होने पर सोचते रहे ,

बड़े होने की जल्दी रही
जब हम बच्चे रहे ।
 
जो आसान  नजर आया
वही रास्ता नापते रहे ,

हर वक्त जिम्मेदारियों से
हम दूर भागते रहे ।

जो नहीं होता है उसी की
हम चाहत रखते रहे ,

यही वजह है हुए पूरे नहीं
हम अधूरे रहे ।

बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

मन के मोती

किस वादे पर  इंसान कर बैठा नफरत

करके कोई पहल इसे मिटा क्यों नहीं देते ,

क्यों पैदा करते है दिलो में ऐसी हसरत

जो सब कुछ आकर यहाँ उजार है देते ।
………...........................................
आदमी जिंदगी के जंगल में

अपना ही करता शिकार है ,

फैलाता है औरो के लिये जाल

और फंसता खुद हर बार है ।
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छोटे छोटे कदम ही लंबे लम्बे  सफर तय किया करते है,
मंजिल के नजदीक पहुँच कर सफलता को चूमा करते है ।

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

एक रोज ...

अपनी धरती होगी
अपना आसमान होगा ,
मान होगा सम्मान होगा
हक़ का सारा सामान होगा,
एक रोज औरत का
सारा जहान होगा ।

बुधवार, 17 जनवरी 2018

औरत

औरत

वो सवाल है वो जवाब है
वो खूबसूरत सा खयाल है ,
वो आज है वो कल है
हर समस्याओ का हल है ,
वो सहेली है वो पहेली है
दुनिया की भीड़ में अकेली है ।
वो मोती है वो ज्योति है
वो इस सृष्टि में अनोखी है ।
वो दर्द है वो मुस्कान है
सुख-दुख में एक समान है ।
वो सांसो का बंधन है
वो रिश्तों का संगम है ।
वो खुशबू है चंदन की
वो रौनक है आंगन की ।
मत समझो केवल 'निर्भया' उसे
पड़ी जरूरत तो वो अभया है ।

सोमवार, 15 जनवरी 2018

लेन -देन

पाना है तो देना है
बात समझ ये लेना है ।
बात बराबर न हो तो
बोझ न मन पर लेना है ।
तुम बेहतर हो ,कहकर
मन को समझा लेना है ।
मौका कहाँ ये सबको मिलता
बस इतना जान  लेना है ।
रब तुम पर है मेहरबान
इस बात पर खुश हो लेना है ।
पाना है तो देना है
बात समझ ये लेना है ।

शनिवार, 13 जनवरी 2018

कल उतना ही सुंदर हो......

कल उतना ही सुंदर हो
जितना बचपन मेरा था ।
न जवाबों की जरूरत थी
न सवालों का डेरा था ।

न मजहब का झगड़ा था
न तेरा न मेरा था ,
जात-पांत का भेद न जाना
मन से मन का फेरा था ।

जो कहता मन मेरा था
वह करता मन मेरा था ,
मुक्त गगन के निचले तल पर
स्वतंत्र स्वछंद बसेरा था ।

भावनाओं से बंधा हुआ
जीवन स्वप्न सुनहरा था ,
हर रात सुकून भरी होती
हर दिन नया सवेरा था ।

गुरुओं का आशीर्वाद लिए
सद्ज्ञान का लगता फेरा था ,
नित अनुशासन में बंधा हुआ
विद्यार्थी जीवन मेरा था ।
कल उतना ही सुंदर हो
जितना बचपन मेरा था ।

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

सच का व्यापार

सच ही बोलती हूँ
सच ही सुनती हूँ
सच के लिए लड़ती हूँ
सच के लिए सहती हूँ
सच के व्यापार मे
मुनाफा नही होता है
बहुत अच्छी तरह से
ये बात जानती हूँ ,
सच की कसौटी पर
खड़ा उतरना आसान नही
ये भी मानती हूँ ,
पर आदत से लाचार हूँ
खुद को नहीं बदल सकती हूं ,
उसूलों की पक्की हूँ
सच का साथ नहीं छोड़ सकती हूं ,
यही वजह है बनकर मसीहा ।
सूली पर लटकी हूँ
मुद्दतों से हारकर भी
हारी नही हूँ
सुना है ,जीत हमेशा
सच की होती है ,
शायद इसे मैं ,'साकार '
कर रही हूँ ।
सच के लिए लड़ रही हूं ।

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

आखिर ऐसा हुआ क्यो ?

सही ही गलत का है हकदार क्यों ?
बेगुनाह को ही सजा हर बार क्यों ?
गीता और कुरान का मान घटा क्यों ?
सच जानते हुए भी झूठ चला क्यों ?
यहाँ धर्म और ईमान डगमगाया क्यों ?
यहाँ गलत करने का डर खत्म हुआ क्यों ?
न्याय के आसरे फिर रहे कोई क्यों ?
इंसाफ के लिए भटके इधर -उधर क्यों ?
खून की जंग चल रही है क्यों ?
खून का रंग बदल रहा है क्यो ?
मानवता का इतिहास पलट गया क्यों ?
सब कब कैसे बदल गया क्यों ?
ऐसा होना तो नही चाहिये ,फिर हुआ क्यों ?
यकीन को खोना तो नहीं चाहिए ,फिर खोया क्यों ?
इतने मजबूर हालात है क्यो ?
उलझे-उलझे सवाल है क्यो ?
सही ही गलत का है हकदार क्यो ?
बेगुनाह को ही सजा हर बार क्यो ?