रविवार, 28 अप्रैल 2019

युग परिवर्तन

युग परिवर्तन

न तुलसी होंगे, न राम

न अयोध्या नगरी जैसी शान .

न धरती से निकलेगी सीता ,

न होगा राजा जनक का धाम .

फिर नारी कैसे बन जाये

दूसरी सीता यहां पर ,

कैसे वो सब सहे जो

संभव नही यहां पर .

अपने अपने युग के अनुसार ही

जीवन की कहानी बनती है ,

युग परिवर्तन के साथ

नारी भी यहॉ बदलती है ।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

हम.......

हम ........

मै को अकेले रहना था

 हम को साथ चलना था

एक को खुद के लिए जीना था

 एक को सबके लिए जीना था ,

 इसलिए सबकुछ होते हुए भी  

मै यहाँ कंगाल रहा

 कुछ नही होते हुए भी

 हम मालामाल रहा ।

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

आखिर ऐसा हुआ क्यों ?


आखिर ऐसा हुआ क्यो ?

सही ही गलत का है हकदार क्यों ?
बेगुनाह को ही सजा हर बार क्यों ?
गीता और कुरान का मान घटा क्यों ?
सच जानते हुए भी झूठ चला क्यों ?
यहाँ धर्म और ईमान डगमगाया क्यों ?
यहाँ गलत करने का डर मिट गया क्यों ?
न्याय के आसरे फिर रहे कोई क्यों ?
इंसाफ के लिए भटके इधर -उधर क्यों ?
खून की जंग चल रही है क्यों ?
खून का रंग बदल रहा है क्यो ?
मानवता का इतिहास पलट गया क्यों ?
सब कब कैसे बदल गया क्यों ?
ऐसा होना तो नही चाहिये ,फिर हुआ क्यों ?
यकीन को खोना तो नहीं चाहिए ,फिर खोया क्यों ?
इतने मजबूर हालात है क्यो ?
उलझे-उलझे सवाल है क्यो ?
सही ही गलत का है हकदार क्यो ?
बेगुनाह को ही सजा हर बार क्यो ?

रविवार, 7 अप्रैल 2019

लेन देन

जीवन की रीत यही है
जो देगा उसे ही मिलेगा

बीज बो और फूल खिलेगा
वृक्ष रोपो तो फल मिलेगा ,

लेन-देन की शृंखला ही
जीवन को परिपूर्ण करेगी ,

सुख -वैभव का आनंद देकर
जीवन मे उल्लास भरेगी ।

ज्योति सिंह

मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

अपनी राह .....


ये रास्ते है अदब के

कश्ती मोड़ लो ,

माझी किसी और

साहिल पे चलो ।

हम है नही खुदा

न है खास ही ,

राहे - तलब अपनी

कुछ है और ही ।

नाराजगी का यहाँ

सामान नही बनना ,

वेवजह खुद को

रुसवा नही करना ।

बे अदब से गर्मी

माहौल में बढ़ जायेगी ,

कारण तकलीफ की

हमसे जुड़ जायेगी ।

हमें हजम नही होती

इतनी अदब अदायगी ,

चलते है साथ लिए

सदा सच्चाई -सादगी ।

फितरत हमें खुदा ने

बख्शी है फकीर की ,

ले चलो मोड़ कर

मुझे अपनी राह ही ।

छोटी सी दो रचनाये

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महंगाई से अधिक

भारी पड़ी हमको

हमारी ईमानदारी ,

महंगाई को तो

संभाल लिया हमने

इच्छाओ से समझौता कर ,

मगर ईमानदारी को

संभाल नही पाये

किसी समझौते पर

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मेरी हर हार

जीत साबित हुई ,

बीते समय की

सीख साबित हुई l