सब चीजों को हमने
बस ,पाने का मन बनाया ,
जब हाथ नही वो आया
तो मन दुख से भर आया ।
जीतकर दुनिया भी सिकंदर
कुछ नही यहां भोग पाया ,
हुकूमत की लालसा में उसने
बस लाशों का ढेर लगाया ।
बहुत ज्यादा की आस में उसने
खुद को सिर्फ भटकाया ,
क्षण भर को आराम न मिला
ले डूबी उसे मोहमाया ।
मिट्टी की ही आशा है
मिट्टी की ही है काया ,
फिर क्यों जरूरत से ज्यादा
है, तूने लालच जगाया ।
मिले जितना उतने में ही
आनंद जिसने भरपूर उठाया ,
सुख मिला जीवन का उसी को
मेहनत से जिसने कमाया ।
ज्योति सिंह
14 टिप्पणियां:
दिल से आभारी हूँ आपकी धन्यवाद
बहुत ही सुंदर ...
मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता
Shukriya sanjay दिल से आभारी हूं तुम्हारी
शुक्रिया कामिनी जी
सुन्दर रचना
सुशील जी शिवम जी बहुत बहुत धन्यवाद ,नमस्कार
बहुत सुन्दर
सादर
वाह जीवन का सार कह दिया आपने ज्योति जी।
मन को सुकून देती सी रचना
सुन्दर प्रस्तुति
सत्य का बोध कराती रचना। बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत ही सुन्दर ,सार्थक एवं सारगर्भित रचना...
वाह बहुत सुंदर
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