गुरुवार, 12 सितंबर 2019

अधूरी आस


ख्यालो की दौड़ कभी

थमती नही

कलम को थाम सकू

वो फुर्सत नही ,

जब भी कोशिश हुई

पकड़ने की

वक़्त छीन ले गया ,

एक पल को भी

रूकने नही दिया ,

सोचती हूँ

इन्द्रधनुषी रंग सभी

क्या बादल में ही

छिप कर रह जायेंगे ,

या जमीं को भी

कभी हसीं बनायेंगे l

4 टिप्‍पणियां:

Jyoti Singh ने कहा…

आपकी तहे दिल से आभारी हूँ ,यशोदा जी

Abhilasha ने कहा…

बेहतरीन रचना

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी....कई भावों को संजोये