गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

संगदिल

तुम तो पत्थर की मूरत हो

नज़र आते , अजंता की सूरत हो ,

जहां प्रेम तो झलकता बखूबी

पर अहसास नही जिन्दा कही भी ,

हर बात बेअसर है तुम पर

जो समझ से मेरे है ऊपर ,

सब बात पे आसानी से कह जाते

कोई फर्क नही पड़ता हम पर ,

इस हाड़ मांस के पुतले में

दिल तो नही ,हो गया कही पत्थर  ? 

तुम कह गए और हम मान गये

यहाँ बात नही होती ,पूरी दिलबर ,

क्या ऐसा भी संभव है

यह प्रश्न खड़ा ,मेरे मन पर ,

छोड़ो अब इसे जाने दो ,देखेंगे

क्या होगा आगे आने पर ।


9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  2. हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यबाद आपका अनिता जी

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  3. तुम तो पत्थर की मूरत हो
    नज़र आते , अजंता की सूरत हो ,
    जहां प्रेम तो झलकता बखूबी
    पर अहसास नही जिन्दा कही भी

    भावपूर्ण सुंदर रचना ❗🙏❗

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  4. बहुत सुंदर कव‍िता ज्योत‍ि जी, और वो भी इस बसंत के मौसम में ..वाह

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  5. बहुत सुंदर ही अभिव्यक्ति ज्योति जी सादर नमस्कार

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