शनिवार, 3 अप्रैल 2021

छोटी छोटी दो रचना


नींव की पुनरावृति कर 
खंडहर क्यो बुलंद करते हो ?
जर्जर हो गये जो ख्याल 
उनमे हौसला कहाँ जड़ पाओगे , 
अतीत को वर्तमान सा न बनाओ 
टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे   । 

⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐

दर्द से दर्द का श्रृंगार नहीं होता
दर्द से किसी को प्यार नहीं होता
दर्द का कोई व्यापार नही होता
दर्द का कोई साहूकार नही होता 
दर्द का दर्द ही आप साथी हैं
दर्द से किसी को सरोकार नही होता। 



13 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों कविताएं यथार्थ के धरातल पर खरी बात बयान करने वाली हैं ज्योति जी ! मन को छू गई ये पंक्तियाँ-अतीत को वर्तमान सा न बनाओ
    टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे।
    और दूसरी कविता में-
    दर्द का दर्द ही आप साथी हैं
    दर्द से किसी को सरोकार नही होता।

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    1. अरे वाह मीना जी पोस्ट डालते ही आप आ गई, सुबह वाकई खूबसूरत है,आपको रचना पसंद आई मतलब कलम ने कुछ अच्छा लिख डाला, मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद 🙏🙏🌷🥀

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  2. दीदी आपकी,दोनों रचनाएं मन में उतर गईं, बिलकुल मजा आ गया,ऐसा लगा जैसे हम भी कुछ ऐसा ही कहना चाह रहे थे
    टूटी हुई कड़ियां जुड़ जातीं
    तो दर्द कहां होता ।
    बिखरे हुए न हम होते
    न वो होता ।।
    ऐ मेरे दिल,काश उनकी तरह
    तू एक परिंदा होता
    दर्द जमीं पे डाल देता,
    उड़ रहा आसमां होता ।।
    सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह....

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  3. वाह जिज्ञासा बहुत ही सुंदर लिखा है, मेरी रचना से बेहतर लगी तुम्हारी बातें, हार्दिक आभार

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  4. हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यबाद रविंद्र जी

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  5. दर्द से दर्द का श्रृंगार नहीं होता
    दर्द से किसी को प्यार नहीं होता
    दर्द का कोई व्यापार नही होता
    दर्द का कोई साहूकार नही होता
    दर्द का दर्द ही आप साथी हैं
    दर्द से किसी को सरोकार नही होता।

    बहुत ही सटीक लिखा आपने ज्योति जी दर्द पर लिखी आपकी रचना वाकई शानदार है।

    हर व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में कभी दर्द ना आए
    लेकिन सच्चाई तो यही है की ज़िन्दगी हो तो दर्द भी रहेगा।

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  6. दोनों कविताएँ बहुत ही सुंदर मन को छूते भाव।
    सादर

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  7. वाह क्या खूब कहा है । बहुत अच्छा लगा ।

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  8. बहुत खूब ज्योति जी बहुत ही सुंदर भाव मन में गहरे उतरते से। सुंदर क्षणिकाएं जैसे बंद्ध है दोनों।
    दर्द की कोई परिभाषा नहीं होती।
    न ही कोई नाप तोल जिसके पास जितना वहीं समझे कैसे चुकाता उसका मोल।
    अप्रतिम।

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  9. ज्योति पहली रचना में खयालों पर ज़ोर है । ख्याल जो जर्जर हो चुके , टूटा मन ,हौसलों की कमी नज़र आ रही है लेकिन अतीत को वर्तमान कैसे बनाया जा सकता है ? वर्तमान को तो अतीत जैसा बना सकते हैं । इसको स्पष्ट करो समझना चाहती हूँ ।

    दूसरी कविता तो दर्द पर है । दर्द पर दर्द क्या लिखें वाकई दर्द का कोई साथी नहीं
    दर्द है तो खुद सहना
    दर्द है तो छुपा लेना
    दर्द को न सारे आम करना
    दर्द है तो ज़िन्दगी है
    ज़िन्दगी है तो दर्द है ।

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