गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

उम्मीद

समझौता भी आता है,

सम्हलना भी आता है।

ज़िन्दगी को जीने का

हल निकल आता है।

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गम को खुशहाल बना रही हूँ,

जख्मों को भरती जा रही हूँ।

चंद ख्वाहिशे अब भी है मेरे साथ ,

उनके लिए रास्ते तलाश रही हूँ.

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचनायें....लिखती रहें...बधाई.

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  2. good thinking and good word selection,congrats.keep it up ,you will make your presence felt.
    Dr.Bhoopendra

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  3. बहुत खूब। कहते हैं कि-

    ख्वाहिशों को खूबसूरत शक्ल देने के लिए।
    ख्वाहिशों की कैद से आजाद होना चाहिए।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. आशा से भरी हुयी सुन्दर रचना..........
    स्वागत है आपका ब्लॉग जगत में

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  5. आप सब मेरे ब्लौग पर आये,मेरा उत्साहवर्धन किया, इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.

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