रविवार, 21 जून 2009

शाख के पत्ते

हम ऐसे शाख के पत्ते है
जो देकर छाया औरो को
ख़ुद ही तपते रहते है ,
दूर दराज़ तक छाया का
कोई अंश नही ,
फिर भी ख्वाबो को बुनते है
उम्मीदों की इमारत बनाते है ,
और ज्यो ही ख्यालो से निकल कर 
हकीकत से टकराते है 
ख्वाबो की वह बुलंद इमारत
बेदर्दी से ढह जाती है ,
तब हम अपनी तकदीर को 
वही खड़े हो ......
कोसते रह जाते है ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर लिखा है.............. मेरा मानना है सब को छाया देने वाले patte ही बने रहना चाहिए........
    सुन्दरता से उतारा है मन के ज़ज्बातों को........

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  2. नासवा जी और वंदना जी बहुत बहुत धन्यवाद जो आपको पसंद आया ..

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  3. हम ऐसे शाख के पत्ते हैं
    जो देकर छाया औरों को
    खुद ही तपते रहते हैं

    बहुत सुन्दर .......!!

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  4. हरकीरत जी आपको ब्लॉग पे देख अच्छा लगा शुक्रिया

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  5. शब्दों में जादू जाग रहा है
    आप बुन रही हैं प्रकृति के रंग रूप शब्दों में .... वाह वाह उसने जलती हुई पेशानी पर पर हाथ रखा सा हाल है

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  6. किशोर जी कविता से ज्यादा बेहतर आपके कहे शब्द है .शुक्रिया आपका .

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