गुरुवार, 25 जून 2009

जीवन -धारा

क्या पता क्या ख़बर
क्या सही ,है क्या ग़लत ,
बहती ज़िन्दगी की धारा में
राज छिपे है बहुत ,
लिए पाप -पुण्य का चक्र
झूठ -सच का व्यूह ,
थोडी महकी थोडी बहकी
कुछ सहमी कुछ गुमसुम ,
कुछ अल्हड़ कुछ मदमस्त
स्नेह-सुरा का उदगार करता स्पर्श ,
कभी दहकता हुआ मन
और बरसता कभी सावन ,
लिए उर में कभी अवसाद घनेरा
पूर्ण -अपूर्ण के छंदों पर
होता खड़ा बसेरा ।
ज़िन्दगी की इस धारा में
है कितने ही मोड़ ,
हंस- हंस कर हमें महज
करते रहना है जोड़ ,
है पता किसे ,इसके गहरे राज़
कल क्या है ,क्या होगा आज ,
भूत - वर्त्तमान - भविष्य
लिए क्या है भाग्य ,
कोई क्या जाने ?
इस ज़िन्दगी के मौलिक आधार ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. पूर्ण-अपूर्ण के छंदों पर होत खडा बसेरा..........क्या बात है!!

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  2. बहुत गहरे अर्थ लिए सुन्दर कविता
    बधाई

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  3. गम्भीर चिंतन की कविता. बहुत सुन्दर

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  4. सच कहा कोई नहीं जानता जीवन के काल चक्र में क्या छिपा है........... मन को चूने वली रचना है

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  5. आप सभी की शुक्रगुजार हूँ ,जो आकर मेरे हौसले को बढाया ,धन्यवाद .

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  6. जीवन की यही तो सच्चाई है कि इसे हम नही जान सकते, सिवाये इसे जीने के या काटने के.
    प्रस्तुति अच्छी लगी.

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  7. वाह ....!!

    एक गहरी सचाई से रूबरू करती आपकी कविता भावों को छु गयी ........!!

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  8. जींदगी का मौलिक आधार तो जीना ही होता होगा, किस तरह कोई जीता है, यह उस पर निर्भर है। कविता अच्छी है। बधाई।

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  9. मन से लिखी , दिल को छूती कवितायेँ !

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