मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हम -तुम

इस दुनिया की भीड़ में

हम -तुम तन्हा चलते है ,

थाम हमारे इन हाथों को

इन राहों पे निकलते है ,

घुँघरू की झंकारों सी

है झंकृत होती खामोशी ,

हल्की मुस्कानों की आभा से

लबो पे एक किरण बिखरी ,

आपस में इन नज़रो ने

कही बातें अनकही ,

यदि अंत न हो राहों का

तो ये सफर थमता न कही ,

ख्यालों में गुमसुम होकर

हम चलते रहते यूँ ही

16 टिप्‍पणियां:

  1. ये उम्मीद ही ज़िन्दगी जीने को बाध्य करती है! आशा न हो तो जीना दूभर हो जाये. आपने विपरीतार्थक से अर्थ निकाला है.... सुन्दर! --आ.

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  2. यह राहें सोच की राहे हैं और हर विचार का कहीं न कहीं अंत होता है लेकिन वहीं से नया विचार भी शुरू होता है । वैसे रास्ते के अंत के बारे मे सोचना भी अद्भुत है ।

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  3. CHALNE KA NAAM HI TO JEEVAN HAI ..... UMEED BAHDHEE RAHE YE DUVA HAI .... SUNDAE RACHNA HAI ......

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  4. दुनिया की भीड़ में तनहा चलना ,हाथ थाम कर रहो पर निकलना ,खामोशी ................घुँघरू की झंकारों से झंकृत होती ..................................ये जीवन की उलटी-सीधी बातों की सीधी-सीधी कविता हैं ...........................हल्की मुस्कानों की आभा से ,लबो पे एक किरण बिखरी ,और फिर तमाम बातें अनकहीं ..................आपको राहों के अंत का ख्याल भी हैं ...................इन राहों पर मेरा भी सलाम ........................पर एक ख्याल और भी कीजिये अभी कितने ही और सलाम हैं बाकी .........................

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  5. घुँघरू की झंकारों सी

    है झंकृत होती खामोशी ,



    khmoshi ka itna sundar rup aapki hi shj abhivykti ho skti hai .
    aapki ashavadi soch aapki rchnao ko purnta prdan karti hai .
    itne dino bahar rhne ke bad aapka svagt hai blog me aapko na pakar suna suna lg rha tha.

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  6. aap sabhi logo ko dil se shukriya saath hi itni achchhi tippani ke liye dhanyawaad .

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  7. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा! बधाई!

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  8. पढ़कर एक खामोशी सी अन्दर को आ चली...जैसे रचना ने कोई सफ़र हो दिया!

    बहुत उम्दा. जारी रहें.
    ---


    Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. thanks for visiting my blog and leaving nice comment.
    aapakee rachanaae bahut pyaree aur jhajhorne walee hai.ab yanhaa aanaa hota rahegaa .

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  11. ज्योति जी आपकी कविता उम्मीद की डोर
    लेकर सुकून दे जाता है मन को ...
    आभार आपकी इस सुन्दर सी रचना के लिए ..

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  12. bhawnaon ka jwar bhata to khoob hai lekin shbdon ki tarteeb kamjor hai. aapki kavita bhi aapsey aapka poora samrapan mangti hai.

    sou yojan marubhumi par kar
    kavita ke prantar mein jana
    bin chhalkaye man ke ghat mein boond boond jal bhar kar lana

    ye dinesh kmar shukla ki panktiyan hain

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