सोमवार, 28 सितंबर 2009

आज.....

दिल ये मानता है उम्र भर

साथ कोई चलता नही ,

दिल ये समझ नही पाता

वो तन्हा जी सकेगा कि नही

किसी मुकिम की तलाश में

ख्वाहिश सदा रही साथ चलने की ,

निबाहे जहाँ वफ़ा के संग

मुकाम वो हो कोई दिल का भी

दुनिया की भीड़ में होकर भी

चाह थी हमें किसी अपने की ,

तमाम उम्र का हिसाब है किसके पास

वर्तमान में भविष्य को तौलता कोई नही

सम्भव हो जहाँ तक ,तब तक चल

आज है संग हमराही ,

अभी देखना क्या कल

कल देखेंगे कल की

11 टिप्‍पणियां:

  1. सम्भव हो जहाँ तक ,तब तक चल
    आज है संग हमराही ,
    अभी देखना क्या कल
    कल देखेंगे कल की ।

    वर्तमान को पूरी शिद्दत से जी लेने की और कल के बारे मे सकारात्मक रुख रखने की आपकी सोच प्रभावित करती है..

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  2. बहुत उम्दा भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति.

    आपको विजयादशमी की बधाई!

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  3. बहुत ही सुंदर भावो की अभिव्यक्ती |
    बधाई

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  4. आज है संग हमराही ,
    अभी देखना क्या कल
    कल देखेंगे कल की ।
    और फिर
    दिल ये मानता है उम्र भर
    साथ कोई चलता नही ,
    बहुत सही भाव और सम्प्रेषण.

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  5. सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने ! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!

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