शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

उलझन ....

कार्य जब हमारे वश का नही ,

पड़ती है जरूरत साहस की ,

चाह कर भी उठे जब

कदम किसी संशय में ,

उलझन भरा वह पल ,

फिर किसी कसौटी से

कम नही ,

घिर जाये निर्णायक यदि

दुविधापूर्ण चिंतन में ,

तो देती परिस्थति गवाही

वहां जीवन - संघर्ष की

9 टिप्‍पणियां:

  1. Behad sanjeeda rachna...anubhav se nikle udgaar hain! Mere blogs pe aapne behad pyarbharee tippaniyan dee hain..abhibhoot kar diya!

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  2. jeevan me dwand uljhane sabhee apanee apanee bhageedaree rakhate hee hai. inase chutkara nahee sath sath hee chalate hai badee acchee rachana .






    '

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  3. घिर जाये निर्णायक यदि
    दुविधापूर्ण चिंतन में ,
    तो देती परिस्थति गवाही
    वहां जीवन - संघर्ष की ।
    बहुत सही कहा आपने।

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  4. घिर जाये निर्णायक यदि
    दुविधापूर्ण चिंतन में ,
    तो देती परिस्थति गवाही
    वहां जीवन - संघर्ष की

    हर एक शब्द बोलता हुआ, अपनी बात को पुरजोर तरीके से सामने रखता हुआ और हमें इस जीवन संघर्ष में सतत प्रयासरत रहने की प्ररणा देता हुआ
    बधाई स्वीकारें
    रचना

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  5. मैं इस उलझन में हूं की मैं किस तरह से काव्यांजलि में अपनी कविताएं प्रकाशित करू....कुछ समझ नहीं पा रहा हूं....क्या आप लोग मदद कर पायेगे....आज़ाद...

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