मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

नरम गरम ....

आज चाँद

है कुछ

नरम -गरम ,

और कर रहा

शायद

वनवास में भ्रमण ,

बदरी के ओट में भी

नहीं छिपा हुआ ,

देखता नहीं तो

जरूर दर्पण ,

चांदनी भी आज

जला रही ,

है जरूर बैठा

किसी कोप भवन ,

जो निकले मिजाज

बदलकर बाहर ,

और चेहरे पर

बिखरी हो मुस्कान ,

कह देना तब

उसे कही ,

यारो मेरा

दुआ सलाम


12 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut achee poem itane din mehmano ko le aap aatithy kee oot me vyst thee chand ko naraj to hona hee tha..........:)

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  2. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. चांद का इस रूप भी । अच्छी कविता ।

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  4. Bahut sundar,saral rachana! Chand ka kopbhavan me baithna...kya khayal hai!

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  5. चाँद को ढूँढना और उसे खोज निकालना अच्छा लगा

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  6. मोहक रचना है ... चंदा से मनुहार अच्छी लगी .... .
    आपको महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......

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  7. aap sabhi ko maha shivraatri ki badhai aur tahe dil se shukriyan bhi ,aakar hausala badhayaa

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  8. ज्योति सिंह जी...रचना के माध्यम से ब्लॉग की एहमियत बयां कर दी...जो सच ही है...अच्छी रचना.

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