मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

उड़ न जाये



ऐसे कब तक हम भरमाये


मन को कहाँ तक भटकाए ,


कोई राह तो आये सामने


ख्याल क्यों उलझते जाये ,


आगे कुआं पीछे खाई


कही इनमे हम गिर जाये ,


फंसकर गर्द की भंवर में


डर है कही उड़ जाये

14 टिप्‍पणियां:

  1. आगे कुआं पीछे खाई

    कही इनमे हम गिर न जाये ,

    फंसकर गर्द की भंवर में

    डर है कही उड़ न जाये
    बहुत सुंदर भाव
    धन्यवाद

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  2. ज्योति जी आदाब
    सच कहा...
    ये भ्रम की स्थिति ही इन्सान को परेशान करती है..
    बहुत सुन्दर रचना..बधाई

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  3. कभी कभी ऐसी स्थिति भी आ जाती है जब भय और भ्रम दोनों ही पस्त कर देते हैं.
    अच्छी रचना

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  5. बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द, गहरी बात

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  6. जोरदार रचना
    बहुत बहुत आभार...............

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  7. अक्सर मन जब भटकता है ... ऐसे बहुत से सवाल पीछा करते हैं ... लाजववब लिखा है आपने ...

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  8. बहुत सुन्दर रचना कि है ज्योतिजी आपने! बहुत खूब!

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  9. shukriyaan tahe dil aap sabhi logo ka ,aabhari hoon jo amulya samya nikal meri rachna ko saraha .

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