मंगलवार, 23 मार्च 2010

सही रंग ......



कैनवास के कुछ पन्नो पर


जब कभी -कभी हम


ब्रश चलाते है , तो


हाथ थम से जाते है ,


वो रंग नही उभरते


जो हमारे अहसास में ,


ख्याल में घुले होते है ,


और बार - बार


शायद यू कहे


लगातार


हमें पन्ने पलटने पड़ते है ,


फाड़कर रद्दी की टोकरी में


फेंकने पड़ते है ,


सही रंग की तलाश में


16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता भाव पुर्ण
    धन्यवाद

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  2. भावपूर्ण रचना!

    बधाई.

    --

    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  3. अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

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  4. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

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  5. होता है कई बार ऐसा भी मन में मंथन की हम चाह कर सही शब्दों को ढूंढ नहीं पाते...और यु ही केनवास पर अपने मनचाहे रंगों को नहीं ला पाते...ये स्थिति दर्शाती है हमारे मन में चलती कशमोकश को..

    अच्छी रचना.

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  6. Sach hai..sahi rang ki talashme hame panne fadkar fenkne padte hain!Bahut sundar!
    Ramnavmiki anek shubhkamnayen!

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  7. सचमुच लाजवाव.
    बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें
    हमें पन्ने पलटने पड़ते है ,

    फाड़कर रद्दी की टोकरी में

    फेंकने पड़ते है ,

    सही रंग की तलाश में ।

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  8. waah! bahut achchha likha hai...

    jaane kitni baar aisa hota hai sahi rang ki talaash mein..

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  9. एकदम सही कहा आपने...
    अक्सर ऐसा ही होता है....

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