रविवार, 25 जुलाई 2010

शिल्प -जतन


नीव उठाते वक़्त ही
कुछ पत्थर थे कम ,
तभी हिलने लगा
निर्मित स्वप्न निकेतन
उभर उठी दरारे भी
बिखर गये कण -कण ,
लगी कांपने खिड़की
सुनकर भू -कंपन ,
दरवाजे भी सहम गये
थाम कर फिर धड़कन
जरा सी चूक में
टूट रहे सब बंधन ,
शिल्पी यदि जतन करता ,
लगाता स्नेह और
समानता का गारा ,
तब दीवारे बच जाती
दरकने से और
संभल जाता ये भवन

20 टिप्‍पणियां:

  1. शिल्पी यदि जतन करता ,
    ----
    तब दीवारे बच जाती
    दरकने से और
    संभल जाता ये भवन ।
    मकाँ यदि हिलने लगे तो कहीं न कहीं शिल्प में ही कमी है
    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरती से शब्दों के द्वारा रिश्तों को दिखाया है आपने....

    जवाब देंहटाएं
  3. रिश्तों के भवन भी कुछ ऐसे ही होते हैं ,स्नेह और विश्वास की नींव पर टिके.
    गहन भाव लिए हुए यह बहुत ही अच्छी कविता है.

    जवाब देंहटाएं
  4. ज्योति जी . शिल्पी कहीं सो न जाँय ।
    प्रशंसनीय रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सागर सी गहरी बात मन में भी हलचल पैदा कर गयी

    जवाब देंहटाएं
  6. जरा सी चूक में
    टूट रहे सब बंधन ,
    शिल्पी यदि जतन करता ,
    लगाता स्नेह और
    समानता का गारा ,
    तब दीवारे बच जाती


    बहुत सुन्दर।
    कबीर भी पछताए कि ‘जतन बिनु मृगनु खेत उजारे’। कवि संपूर्णता में देखता है। वह बार बार अवलोकन और विश्लेषण करता है..जतन के मार्ग तलाशता भी है और तराशता भी है।
    अंधों को ज्योति दिखाने का धन्यवाद ज्योति जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. क्या कहूँ .......?

    इन रिश्तों को दरकने से बचाते बचाते ही ज़िन्दगी कट जाती है ......!!

    बस कट ही जाती है ....जी नहीं जाती .......!!

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..


    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  9. शायद इसीलिए नीव का मज़बूत होना बहुत ज़रूरी होता है ... चाहे भवन हो या रिश्ता ....

    जवाब देंहटाएं
  10. ज्योति जी...आपकी रचनाओं में दिन-प्रतिदिन पहले से कहीं ज़्यादा निखार आ रहा है...
    बधाई स्वीकार करें...
    जरा सी चूक में
    टूट रहे सब बंधन..
    ये चंद शब्द ही इसका प्रमाण हैं.

    जवाब देंहटाएं
  11. waah waah waah...
    bahut hi kamaal ki rachna...
    sambandhon ko bahut uchit bimb diya hai aapne...
    aaj to main bas kuch kah nahi paa rahi hun..mujhe aapki rachna kitni acchi lagi...
    BAHUT HI ACCHI...
    SACH MEIN..!!

    जवाब देंहटाएं
  12. कितना निखर रही हो आजकल अच्छा लग रहा हें.

    जवाब देंहटाएं
  13. शिल्पी यदि जतन करता ,
    लगाता स्नेह और
    समानता का गारा ,
    तब दीवारे बच जाती
    दरकने से और
    संभल जाता ये भवन

    स्नेह का अभाव व असमानता का प्रभाव ही तो दरका देता है रिश्तों का भवन...खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं
  14. bahut sunder gahare bhav liyeek adbhut rachanaa jo rishto ke nibh nahee pane ke karno par tavajju detee hai .

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत खूबसूरती से शब्दों के द्वारा रिश्तों को दिखाया है आपने....

    जवाब देंहटाएं