गुरुवार, 26 अगस्त 2010

धुंध


अश्को का सैलाब

डबडबा रहा है आंखों में ,

फिर भी एक बूँद

पलको पर नही ,

निशब्द खामोशी भरी उदासी

कहने को बहुत कुछ पास में ,

परन्तु बिखरी है संशय की

धुंध भरी नमी सी ,

कितनी दुविधापूर्ण स्थिति

होती है यकीन की

7 टिप्‍पणियां:

  1. अश्को का सैलाब...डबडबा रहा है आंखों में ,

    फिर भी एक बूँद...पलको पर नहीं...
    ..........
    कितनी दुविधापूर्ण स्थिति...होती है यकीन की ।
    वाह....भावों के अंतर्द्वंद को प्रदर्शित करती बेहतरीन रचना...
    ज्योति जी,
    आपकी रचनाओं में निखार के नित नए रंग नज़र आ रहे हैं...बधाई स्वीकार कीजिए.

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  2. ये अश्क ....संशय ..दुविधाए .....ही स्त्री के लिए तपस्या है .....

    और क्या कहूँ ....?

    अभी हमें इन्हीं कठिन रास्तों से गुजरना है .....

    चलती रहे .....!!

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  3. बस संज्ञा शून्य स कर दिया है ...बहुत गहरे भाव भरे हैं ..

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  4. कभी कभी रोना तो आता है पर आंसू नहीं बहते.... बहुत अच्छी लगी ये कविता...

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  5. बहुत खूब!!!!!...बधाई स्वीकार कीजिए.

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