सोमवार, 13 सितंबर 2010

याचना


आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम

ढलते सूरज को करके सलाम ,

कल सुबह जो आओगे

लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,

आशाओं की किरणे फैलाना

मंजूर करे जिससे , ये मन

कण -कण पुलकित हो जाए

तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,

जन -जन में भरकर निराशा

न रोज की तरह ढल जाना ,

आशाओ के साथ उदय हो

खुशियों की किरणे बिखराना,

करती आशापूर्ण याचना

हाथ जोड़कर आती शाम ,

रवि तुम्हे संध्या बेला पर

करू उम्मीदों भरा सलाम ।

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर आशाओं की उमीद जगाती रचना। बधाई।

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  2. बहुत सुन्दर भाव ..आशा का संचार स करती रचना

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  3. सुंदर भाव ... आशा और स्फूर्ति का संदेश भरती ....

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  4. आशाओं की डोर से बँधा जगत का अस्तित्व।

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  5. तुम से उम्मीद-ए-वफा होंगी जिन्हे होंगी हमे तो आजमाना है कि तु जालिम कहाँ तक...

    एक शेर के बहाने अपनी बात कहने की कोशिस की है मैने...

    उम्दा लेखन
    डा.अजीत

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  6. आशा और उम्मीद जगाती....
    प्यारी रचना ..... अच्छा लगा पढ़कर

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  7. आशाओं और उम्मीदों की सुंदर रचना .....!!

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  8. आशाओं के साथ उदय हो
    खुशियों की किरणें बिखराना...
    सार्थक...
    आशा का संचार करती रचना.

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  9. आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए यह कविता बहुत सुन्दर बन पड़ी है.

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  10. आशावादी जज्बातों के साथ सुंदर शब्द व्यंजन.

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  11. बहुत सुंदर रचना


    कण -कण पुलकित हो जाए

    तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,
    वाह !बहुत बढ़िया!

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  12. कण -कण पुलकित हो जाए
    तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,
    जन -जन में भरकर निराशा
    न रोज की तरह ढल जाना ,
    रवि तुम्हे संध्या बेला पर
    करू उम्मीदों भरा सलाम ।



    ज्योति जी!
    सूरज से यही उम्मीद होनी चाहिए। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।

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  13. aisee rachanae jo kuch pyare sandesh de jatee hai meree kamjoree hai......
    bahut bahut sunder soch kee sunder abhivykti .

    jyotijee abhee bhee bahar hoo hee atah samay par comment nahee de paa rahee hoo .

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  14. Very Nice....
    Chadte Suraj ko sabhi salaam Karte hai
    Doobte Suraj ke Bahut Sunder Bhaav

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