सोमवार, 4 अक्तूबर 2010
सब का मालिक एक है
ईश्वर हो या अल्लाह
वो कहता बस यही ,
हमे न चाहिए कोई जमीं
और न इमारत बड़ी -बड़ी ।
मैं तो हूँ कण -कण में
जीवन के हर धड़कन में ,
याद करोगे जिस जगह
मिलूंगा तुम्हे मैं वही ।
नाम हमे चाहे जो दे दो
इबादत तो है एक ही ,
बाँट रहे हो क्यों हमको
हम तो है सबके ही ।
मैं तो नेक इरादों में
मानवता की राहो में ,
प्रेम के निर्मल भावो में
इंसानियत से बढ़कर
नही होता धर्म कोई ।
धर्म सभी होते है सच्चे
अहसास सभी होते एक से ,
वही इनायत बरसेगी
फर्क जहां न होगा कोई ।
हमने तो नही सिखाया
तुम्हे करना भेद कभी ,
न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम
है केवल यहाँ इंसान सभी ।
.........................................................
इस रचना को फैसले के पहले ही डालना था ,इसे मैं भोपाल में लिखी रही जब वहां गयी थी ,उस समय गणेश चतुर्थी रही मगर लौटने के बाद सोचते -सोचते समय निकल गया फिर संकोच में नही डाल सकी ,मगर कल अपने मित्र के यहाँ जाकर जब इसे पढायी तो उसने कहा तुरंत डाल दो ,और आज डाल पायी ।
der se aaee ye post par durust aaee .......
जवाब देंहटाएंbahut sarthak rachana hai.......
मानवता की राहो में ,
प्रेम के निर्मल भावो में
इंसानियत से बढ़कर
नही होता धर्म कोई ।
kitnee badiya bhav hai.........
Aabhar
जो धारण करे वह धर्म, धारण करे मानवता को।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात है इन्सानियत से बढ कर कुछ भी नही। यही सच्चा धर्म है । सार्थक रचना। बधाई। कृ्प्या यहाँ भी देखें। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंhttp://veeranchalgatha.blogspot.com/
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भावों से सजी अच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिखा है , जिसको सिर्फ दिल में थोड़ी सी जगह चाहिए , उसने कभी जमीन माँगी ही नहीं ।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंमोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में.....
जवाब देंहटाएंमज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना....
दोनों ही याद आ गए आपकी रचना पढ़ कर!
आभार!
आशीष
--
प्रायश्चित
बहुत सुंदर भाव के साथ रची गई है ये कविता ,
जवाब देंहटाएंये हर सच्चे हिन्दुस्तानी के दिल की आवाज़ है हम अम्न चाहते हैं ,भाईचारे में विश्वास रखते हैं ,सभी धर्मों का आधार मानवता ही है ,बस उसे ही अपना लें
तो धर्म का सच्चा पालन होगा
ज्योति जी बधाई हो ,इस र्साथक कविता के लिये
बहुत सुंदर लिखा आप ने , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. काश सब ईश्वर की इस आवाज़ को सुन सकें.
जवाब देंहटाएंयह तो बहुत ही सुन्दर भाव लिए हुए कविता है..काश ऐसा हर कोई सोच पाए और समझ पाए तो भारत से सुन्दर कोई और देश इस धरती पर नहीं होगा.
जवाब देंहटाएंइंसानियत से बढ़कर
नही होता धर्म कोई ।
हर कोई यह एक बात ध्यान में रखे तो इतनी अशांति ही क्यों हो!
बहुत अच्छी रचना है .
इंसानियत से बढ़कर...नहीं होता धर्म कोई
जवाब देंहटाएंधर्म सभी होते हैं सच्चे..अहसास सभी के होते एक से...
बहुत सही और सच्ची बात कही आपने...
हर मज़हब इंसानियत का पैग़ाम देता है...
पवित्र और अम्नो-अमान के भाव से रचित रचना के लिए बधाई.
मानवीय सम्वेदना को बेहतरीन ढंग से आपने उकेरा है... बधाई
जवाब देंहटाएंडा.अजीत
रचना तो बहुत सुन्दर है, फिर संकोच कैसा? और आपने अपनी रचना में जो बात कही है वो अत्यंत सुन्दर और निर्मल है ... पर धर्मांध लोग समझ नहीं पाते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव है इस रचना में .. काश सब इस भावना को समझें ....
जवाब देंहटाएंआगर इस रचना पर संकोच है तो फिर शायद हर रचना पर संकोच करती होंगी। सुन्दर और सार्थक सन्देश देती है ये रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंयह भाव तो हर समय प्रासंगिक है ।
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