बुधवार, 2 मार्च 2011

शिकवा


उम्र गुज़र जाती है सबकी

लिए एक ही बात ,

सबको देते जाते है हम

आँचल भर सौगात ,

फिर भी खाली होता है

क्यो अपने में आज ?

रिक्त रहा जीवन का पन्ना

जाने क्या है राज ?

रहस्य भरा कैसा अद्भुत

होता है , क्यो अहसास ?

रोमांचक किस्से सा अनुभव

इस लेन-देन के साथ ,

गिले -शिकवे की अपूर्णता पे ,

घिरा रहा मन हर बार .

22 टिप्‍पणियां:

  1. सबको देते जाते है हम
    आँचल भर सौगात ,
    फिर भी खाली होता है
    क्यो अपने में आज ?
    रिक्त रहा जीवन का पन्ना
    जाने क्या है राज ?
    बहुत सुंदर विचारणीय पंक्तियाँ........... संवेदनशील भाव...

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  2. Aapne bahut achhaa kiya jo phir se likhne lageen!
    Bahut sundar hai rachana!

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  3. शिकवे शिकायतों से ही जीने का मज़ा दुगना हो जाता है. बहुत बढ़िया प्रस्तुति...हर हर महादेव..शिवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनायें.

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  4. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, संभवतः जीना इसी का नाम है।

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  5. जीना इसी का नाम है.. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  6. यही तो जीवन है। सुन्दर एहसास । बधाई।

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  7. कहते हैं "नेकी कर ,दरिया में डाल" वर्ना तो 'इस लेन देन के साथ ,गिले-शिकवे की अपूर्णता पे ,घिरा रहा मन हर बार.' की ही स्थिति बनी रहती है .
    मन की उलझन को दर्शाती सुंदर अभिव्यक्ति .

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  8. ज्योति सिंह जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    जाने क्या है राज ?… अजी आदमी है :)
    मेरे ख़ास अज़ीज़ मुझे राज़ कहते हैं … और मैं आदमी हूं …
    हा ऽऽ हा ऽ हऽऽऽ

    मजाक की बात थी यह तो , गंभीर हो जाते हैं …

    सबको देते जाते है हम
    आंचल भर सौगात ,
    फिर भी खाली होता है
    क्यो अपने में आज ?
    रिक्त रहा जीवन का पन्ना
    जाने क्या है राज ?


    प्रश्न स्वाभाविक है …
    लेकिन हम जैसों के लिए उदास-हताश शब्द नहीं हैं …
    हम सृजक देना ही जानते हैं …
    नदिया न पिये कभी अपना जल !
    वृक्ष न खाए कभी अपने फल !!


    … और कहा भी है न , कि
    अपने लिए जिये तो क्या जिये
    तू जी ऐ दिल ! ज़माने के लिए …


    सुंदर कविता है, अनेक विचार जाग्रत करने के लिए यह संक्षिप्त रचना पर्याप्त है …

    बहुत बहुत बधाई !
    हार्दिक शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  9. बहुत उम्दा.

    गिले -शिकवे की अपूर्णता पे ,
    घिरा रहा मन हर बार

    अपूर्णता का नाम ही जीवन है.
    सलाम.

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  10. प्रेम का तो अक्षय कोष है ,कहाँ रिक्त होगा यह ?

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  11. बहुत अच्छी प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  12. सारी बातें तो कविता में आ गईं.बस यही ज़िन्दगी है, ज्योति जी

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  13. ज़िन्दगी शायद यूँ ही अपने सफ़र तय करती है ...

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  14. jivan ki sachchaiyo tatha ahsason se bhari bahut hi sateek prastuti---
    bahut behatreen---
    poonam

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  15. रिक्त रहा जीवन का पन्ना .....

    इस रिक्तता ने और रिक्त कर दिया .....

    तस्वीर से नज़रें नहीं हटतीं .....

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  16. जीवन के कई पहलुओं में से एक यह भी है..अपने बढियां चित्र उकेरा है...
    नमस्कार.

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  17. बहुत बधिया प्रस्तुती. ये जीवन है...इस जीवन का यहि है रन्ग रूप.

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  18. बहुत खूब ... सच है जीवन में ऐसे पल आते हैं जब मन में रिक्तता आ जाती है ... कुछ ऐसे ही लम्हों को ले कर बुनी है रचना ....

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  19. लाजवाब वर्णन किया है यात्रा का ... लग रहा है आपके साथ ही इस यात्रा में हम भी शामिल हैं ...

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  20. यही तो जिन्दगी है
    सुन्दर रचना के लिए
    शुभकामनाये

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  21. दुविधाओं में घिरा व्यक्ति ऐसा ही सोचने लगता है अक्सर..
    कशमकश के भाव मिले कविता में ....

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