गुरुवार, 1 मार्च 2012

जमीर


उसका जमीर
आज भी
जिन्दा है ,
तभी तो खड़ा हो
आइने के आगे
वह शर्मिंदा है .

24 टिप्‍पणियां:

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  2. 'मुखडा क्या देखे दर्पण में,तेरे दया धर्म नहीं मन में'

    कहते हैं आईने में मुखडा अपनी खूबसूरती
    का आकलन करने के लिए देखते हैं.

    लेकिन यदि आईना देख शर्मिंदगी महसूस हो,
    और दया धर्म की ओर चलने की भी सोचे
    तो सच में कहेंगें जमीर जिन्दा है.

    आजकल आप बहुत गूढ़ होती जा रही हैं,ज्योति जी.आपके १६ शब्दों पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है.शब्दों की ज्योति प्रज्जवलित करती हैं आप.आभार.

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  3. Sach kaha hai ... Janvar aur insan mein Ab ye fark hai .. Insan sharm kho chuka hai ...

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  4. सच है, दर्पण कुछ तड़प भर कर जाता है, हर बार..

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  5. आइने की जादूगरी ही है कि ज़मीर मरता नहीं प्रतिबिंबित होता रहता है.

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  6. बहुत प्यारी ..प्रभावपूर्ण लगी आपकी क्षणिका! बधाई !! पहली बार आपके ब्लॉग पर जाना हुआ

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  7. बहुत ही सारगर्भित प्रस्तुचि । मेरे नए पोस्ट "राम दरश मिश्र" पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए इंतजार करूंगा । धन्यवाद ।

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  8. होली के रंगारंग शुभोत्सव पर बहुत बहुत
    हार्दिक शुभकामनाएँ आपको.

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    ♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
    ♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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  10. आपकी कई छोटी छोटी किंतु बडे आशय वाली कविताएं पढ गई । बहुत ही अच्छा लगा । जमीर ऐसा ही होता है सही वक्त पर आपको सही गलत की पहचान कराता है ।

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