गुरुवार, 9 जनवरी 2014

जरा  ठहर  कर  देखते  है  
मंज़र  क्या  है  आगे  का  ,
बहुत  जरूरी  है  संभलना 
पता  चलता  नहीं  इरादो  का। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. नया साल शुभ हो ज्योति.बहुत दिनों बाद दिखाई दी हैं.चित्र और कविता की पंक्तियाँ दोनों सुन्दर !

    शीर्षक नहीं दिया कविता को?

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  2. सुन्दर कविता.
    वास्तव में ठहर कर देखना
    और संभलकर चलना जरुरी है.

    शुभकामनाएँ ज्योति जी.

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  3. सही कहा आपने । नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  4. संभालना जरूरी है जीवन में ... कदम कदम पे दुश्वारियां होती हैं ...

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  5. जरा ठहर कर देख तो लेते, मंज़र क्या है आगे का !
    बहुत जरूरी रहे संभलना ,किसको पता इरादों का !

    कमाल के भाव हैं ! प्रभावशाली . . .

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