न तुलसी होंगे, न राम
न अयोध्या नगरी जैसी शान .
न धरती से निकलेगी सीता ,
न होगा राजा जनक का धाम .
फिर नारी कैसे बन जाये
दूसरी सीता यहां पर ,
कैसे वो सब सहे जो
संभव नही यहां पर .
अपने अपने युग के अनुसार ही
जीवन की कहानी बनती है ,
युग परिवर्तन के साथ
नारी भी यहॉ बदलती है .
सुन्दर और प्रेरणादायी पंक्तियाँ :)
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है ज्योति.
जवाब देंहटाएंराम होंगे तो सीता भी होंगी..युग बदल गया है..