शनिवार, 11 मई 2019

गुमां नहीं रहा


जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा

इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,

आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ

साथ के इसका एतबार नही रहा ,

मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये

हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ,

जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए

मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,

देख कर तबाही का नजारा हर तरफ

अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा ,

वर्तमान की काया विकृत होते देख

भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा ,

सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी

हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद ,मैं अवश्य आऊँगी ,नमस्कार

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  2. बहुत शाश्वत भावों वाली सार्थक रचना ।
    बहुत सुंदर।

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  3. दिल के सुंदर एहसास
    हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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  4. चिंतन मनन करती हुयी रचना ...
    एक समय आता है ऐसा जब खुद का खुद पे अधिकार नहीं रहता ... यही जीवन है ...

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  5. बहुत सुन्दर रचना ज्योति जी

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद साथियों

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