रविवार, 14 जून 2020

खामोशी

खड़ी खड़ी मैं देख रही

मीलों लम्बी खामोशी ।

नहीं रही अब इस शहर में

पहले जैसी  हलचल सी

खामोशी का अफसाना ,क्यों

ये वक़्त लगा है लिखने

जख्मों से हरा भरा ,क्यों

ये शहर लगा है दिखने

देकर कोई आवाज कही से

तोड़ो ये गहरी  खामोशी

बेहतर लगती नही कही से

गलियों में फिरती खामोशी ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 15 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. धन्यवाद यशोदा जी ,हार्दिक आभार

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  3. खामोशी अच्छी नहि लगती देर तक .... पर कई बार जब प्राकृति रूठती है तो ऐसा होता है जैसे की ये समय ...

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  4. ख़ामोशी मन की या शहर की उदास करती है। भावपूर्ण रचना।

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  5. बहुत हृदयस्पर्शी सृजन ।

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