सोमवार, 1 जून 2020

मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यो ..........

जीवन की अवधि

एवं दुर्दशा

चींटी की भांति

होती जा रही है

कब मसल जाये

कब कुचल जाये

कब बीच कतार से

अलग होकर

अपनो से जुदा हो जाये ,

भयभीत हूँ

सहमी हूँ

चिंतित हूँ

मनुष्य जीवन आखिर

अभिशप्त क्यो हो रहा है ?

कही हमारे कोसने का

दुष्परिणाम तो नहीं

या फिर

कर्मो का  फल ?

9 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रही हो हम डर डर कर जीने के लिए मजबूर हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सच है, मनुष्य ही नहीं हर प्राणी डरा हुआ है।

    जवाब देंहटाएं
  3. कही हमारे कोसने का

    दुष्परिणाम तो नहीं

    या फिर

    कर्मो का फल ?

    कुछ समझ में नहीं आ रहा !

    जवाब देंहटाएं
  4. के हमारे कर्म ही हैं जो सामने आ रहे हैं ...
    बोया बबूल तो ...

    जवाब देंहटाएं
  5. सही कहा आपने..आज हम सभी डर डर कर ही जी रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं