मंगलवार, 26 मई 2009

शक के दायरे में

हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है ,
पत्थर मार कर घर में झाँकने लगे है ,
कानो को चिपका कर सुनने लगे है ,
फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं ,
तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है ,
और मन गढ़त किस्से बनाने लगे है ,
हर बात उनकी समझ से परे है ,
फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है

5 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut badhiya, kaphi sach bhi aur lagbhag har cheez se judi hui.....

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  2. हम तो बस यही कहेंगे....वाह....वाह....वाह......!!इससे ज्यादा कहेंगे तो आप कहेंगे कि हम आपको चढाने लगें हैं.....ही--ही-ही-ही-...!!

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  3. आपमें अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने की क्षमता है, इसे निखारें. साहित्य शिल्पी पर काव्य का रचनाशास्त्र और हिन्दयुग्म पर दोहा गाथा सनातन पढिये. दिव्यनर्मदा पर भी कक्षाएं शीघ्र ही प्रारंभ होंगी.

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  4. aapne is kavita ke madhyam se samaj par hasyaprad tarike se prahar kiya hai jo vicharaniya aiv kalatmak najariya hai

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