गुरुवार, 9 जुलाई 2009

कुछ बूंदे कुछ फुआर

तफसीर जब बेबसी का हुआ
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।
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जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
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छेड़कर ज़िक्र तो करो
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे
सोये हुए दर्द के साथ ।
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उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा दे ।
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तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
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ये चंद शेर अपने दोस्त की गुजारिश पे लिखी हूँ ,
ब्लॉग पे इसे नही लिखती ।
ये सब पुरानी रचना है जिसे सामने नही लाती ।

18 टिप्‍पणियां:

  1. उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
    अब तो इस क़ैद से रिहा दे

    खूबसूरत है सब शेर ............ लाजवाब ........... और आप ऐसा न सोचें की पुरानी चीज शेयर नहीं करनी चाहिए .......... इतना लाजवाब लिखा हुवा जरूर सबके साथ शेयर करना चाहिए........ हम को भी ख़ुशी होगी इस बात की

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  2. kuchh yaadejudi hai gahari inse isliye saath le kar nahi chal paati .aapka bahut hi shukriya .jo hausala diya .aap to dost ki tarah saath nibha rahe hai .achha hai jo sab saath chale .

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  3. bahut hi sundar rimajhim barsaat ..............ek behatrin rachana .............ek se ke badhkar sher

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  4. सतना की सूखी धरती पर जिस तरह अभी पहली बारिश ने कुछ राहत दी है, कुछ इसी तरह आपके शेरों की फ़ुहार ने मन को राहत दी है......आपने अपने मित्र की बात मान कर बहुत अच्छा किया...बधाई.

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  5. om ji ,vandana ji ,shastri ji ,aap sabhi ka shukriya . bin barsat ke bhige aur bheega bhi diya ,mausam ka maza duguna hua .shastri aap pahali baar aaye hai .aapko mera namaskar .

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  6. तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
    बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
    ak se bdhkar ak sher
    hai .old is gold .jab ham purani yado ka jikr karte hai to apni rchnao ka kyo nhi ?
    jrur likhiye .aao thoda rumani ho jaye ........
    tppni ke liye dhnywad.
    abhar

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  7. ज्योति j जी
    यह फुहारें तो मन भिगो गयीं ,

    दर्द कहाँ -कहाँ है , ये न पूछ
    ये दर्द नहीं कहाँ है पूछ

    अर्थ यथार्थ आगमन का आभारी हूँ , बिजली गयी बातें फिर कभी

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  8. "उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से,
    अब तो इस क़ैद से रिहा दे"
    बहुत उम्दा शेर....आपने अपने मित्र की बात मान कर बहुत अच्छा किया..बहुत बहुत बधाई....

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  9. दर्द का गहरा एहसास कराती काव्यांजलि .मन का सोज , शायिरी का साज़ बन कर उभरा है.

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  10. उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
    अब तो इस क़ैद से रिहा दे
    sahi hai..
    bilkul sahi hai..

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  11. ada ji aap aayi yahan bhi main byan nahi kar paa rahi is khushi ko .shukriya .

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