बुधवार, 5 अगस्त 2009

अश्को का सैलाब
डबडबा रहा है आंखों में ,
फिर भी एक बूँद
पलको पर नही ,
निशब्द खामोशी भरी उदासी
कहने को बहुत कुछ पास में ,
परन्तु बिखरी है संशय की
धुंध भरी नमी सी ,
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है यकीन की ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. परन्तु बिखरी है संशय की
    धुंध भरी नमी सी ,
    कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
    होती है यकीन की ।

    यकीन और संशय के बीच झूलते शब्द
    कितने मुखर और कितने निशब्द !!!

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  2. kitni duvidha .............yakeen ki.

    bahut adbhut panktian. sunder rachna,

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  3. बहुत अच्छे से अपनी दुविधा को बयान किया है आपने. बधाई.

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