गुरुवार, 6 अगस्त 2009

याचना

आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम
ढलते सूरज को करके सलाम ,
कल सुबह जो आओगे
लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,
आशाओं की किरणे फैलाना
मंजूर करे जिससे , ये मन ।
कण -कण पुलकित हो जाए
तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,
जन -जन में भरकर निराशा
न रोज की तरह ढल जाना ,
आशाओ के साथ उदय हो
खुशियों की किरणे बिखराना,
करती आशापूर्ण याचना
हाथ जोड़कर आती शाम ,
रवि तुम्हे संध्या बेला पर
करू उम्मीदों भरा सलाम ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. रवि को उम्मीदो भरा सलाम और कल फिर आने की याचना -- आशावादी रचना

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  2. jyoti deri se aane ke liye ksham chahunga . bahut dino baad blog me aaya hoon .

    aapki ye kavita padhkar jaise dil me ek naya utsaah bhar gaya hai .. main aapki dusari kavitao ko bhi jaldi hi padhunga



    regards

    vijay
    please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

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  3. बहुत बढ़िया रचना . लिखती रहिये. धन्यवाद.

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  4. UMEEDON KI AAS MEIN RACHI SUNDAR KAVITA.......AASHAA KA SANCHAAR KARTI, SUBAH KI LAALI KE SWAAGAT KO TATPAR LAJAWAAB KAVITA

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