रविवार, 9 अगस्त 2009

न्याय


पहली रात की बिल्ली

मारना किसे चाहिए

मार कौन रहा था ।

सारे उम्र की बाज़ी

एक पल में लगा रहा था ।

पलड़े का भार

कही दिशा न बदल दे ,

सभी बाँटें अपने पलड़े पर चढ़ा रहा था ।

कांटे की नोंक को असंतुलित कर ,

अपनी ही ओर झुकाते जा रहा था ।

शायद वक्त ही उससे

ये करवा रहा था ।

और वक्त ही उसकी हरकत पर

मंद -मंद मुस्कुरा रहा था ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. शायद वक्त ही उससे ये करवा रहा था । और वक्त ही उसकी हरकत पर मंद -मंद मुस्कुरा रहा था ।
    ===
    गहरे अर्थ और सादगी से कही बात
    बेहतरीन रचना

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  2. रचना का हर शब्द कुछ न कुछ
    रहस्य प्रकट करता है।
    बधाई।

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  3. पहली रात की बिल्ली मारना किसे चाहिए मार कौन रहा था ।.....

    der lagi pahoonchne main lekin jugat lagane ke baad pahunch hi gaya...

    ...chayavadi kavita ka adbhoot udharan !!

    पहली रात की बिल्ली मारना किसे चाहिए मार कौन रहा था ।

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  4. bahut bahut shukriya aap sabhi ka .sachchai se judi hui ghatna par hi aadharit hai .tabhi rahsya pragat kar rahi hai .aap sabhi ko namaskar .

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  5. शायद वक्त ही उससे ये करवा रहा था

    गहरे अर्थ लिए है ये रचना आपकी.......... और सच ही कहा...... वक़्त ही तो सब करवाता है और फिर हंसता भी है उस पर

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  6. अधभुत ,अधभुत, अधभुत, अंतर्चेतनाओं पर पहुचने वाली आपकी द्रष्टी को प्रणाम !
    गहरी बात ,सच से मुलाकात ,काव्य सोन्दर्य को स्वतः समेटे , सच्चा जीवन दर्शन ,
    मेरे प्राणों में पैठ कर गयी आपकी नूतन-प्राचीन का भेद मिटाने वाली काव्य-अभिव्यक्ती

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  7. शायद वक्त ही उससे ये करवा रहा था - बहुत शानदार। लिखती रहिए। मेरे ब्लॉग सादर आमंत्रण।

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  8. सुश्री ज्योति जी,

    एकात्म होते हुये युग में इंसान अब आत्मकेंद्रित हो रहा है, और उन्हीं भावों को बाखूबी अभारा है आपने।

    और उसे वक्त/दौर या चलन का नाम देकर प्रासंगिक भी बनाये रक्खा है।

    अच्छी रचना के लिये बधाई।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  9. JYOTI JI, RAHASYA MAYI, KAI PRASHNON KO UBHARTI RACHNA,AUR SWAYAM HI UTTAR DETI, BEHATAREEN RACHNA.

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