शनिवार, 8 अगस्त 2009

स्मृतियाँ

स्मृतियाँ लहराती है

भीनी -भीनी खूशबू सी ,

उड़ती है लेकर यादों की

सिमटी हुई धूल

हर याद किसी शै को

साथ लिए होती है

कभी वह उभरती हुई

कभी डूबी होती है

मानस पटल पर ये रेखा

जुडी होती है किसी रस्म -भांति ,

तय करती है कभी फासले

कभी नजदीक होती है

अतीत -वर्तमान को

नापती - तौलती हुई ,

कभी सहारा देती

कभी बेसहारा करती है


6 टिप्‍पणियां:

  1. स्मृतियाँ लहराती है
    भीनी -भीनी खूशबू सी ,
    बहुत खूबसूरत रचना

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  2. स्मृतियाँ .............अतीत -वर्तमान को
    नापती - तौलती हुई ,
    कभी सहारा देती
    कभी बेसहारा करती है,
    आपके अभिव्यक्ती का नया प्रशंशक ....

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  3. ज्योति सिंहजी
    नापती - तौलती हुई ,
    कभी सहारा देती
    कभी बेसहारा करती है,

    बडी ही अच्छी रचना लिखी है आपने।
    बहूत ही सुन्दर

    आभार/ मगल भावनाऐ
    हे! प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई-टाईगर
    SELECTION & COLLECTION

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  4. Khubsurat bhavabhivyakti....badhai.

    शब्द-शिखर पर नई प्रस्तुति - "ब्लॉगों की अलबेली दुनिया"

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  5. Yaadein jeene ka saharaa hain
    Yaaadein jeevan hain
    yaaadon ki sondhi sondhi khushboo hame hamse jodti hai.

    achchi rachna hai. likhte rahiye.

    Dr Jagmohan Rai

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