सोमवार, 24 अगस्त 2009

मनोवृति

सुबह -सुबह का वक्त

दरवाजे के बाहर

खड़ा कोई शख्स ,

बड़ी तेज आवाज़ लगाई ,

क्या कोई है भाई ?

अन्दर से एक सभ्य

महिला निकल आई ,

देख भिखारी को

आँखे तमतमाई ,

तभी भिखारी ने कहा ,

दे -दे कुछ माई ,

अल्लाह भला करेगा तेरा

मिलेगी तुझे दुहाई

पर इस बात से उसके

कानो पे कहाँ जूँ रेंग पाया ,

उसने अपने वफादार

टौमी को बुलाया ,

भिखारी के पींछे दौड़ाया ,

भिखारी झोला ,कटोरा

लिए दौड़ा ,

लेकिन कुत्ते ने उसे

कहाँ छोड़ा ।

मांस का टुकड़ा नोंच लाया ,

और मजे से चबाया

फिर भी

मालिक ने उसे सहलाया ,

दूध -बिस्कुट खिलाया ,

और समझाया

बेटा -आगे से ऐसे ही पेश आना ,

इन गंदे कीड़ों को यहाँ

आने पर पड़े पछताना

11 टिप्‍पणियां:

  1. yek varh vishesh ki gandi soch aur maansikta darsaati bhut hi sundar rachna
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

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  2. ज्योति जी बहुत अच्छा लिखा है
    इस बार आपने नवीन प्रयोग किया है और सोचता हूँ कि आप सदा ही नया करती रहती हैं .

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  3. वाह बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! आपकी हर एक रचनाओं में एक अलग सी बात होती है ! बहुत बढ़िया लगा!

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  4. इसे कहते है व्यंग्य ,समाज पर करारा तमाचा ,मानव की विवशता और कुत्ते की किस्मत

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  5. .........कहते हैं ना कुछ भी अच्छा, बड़ा ,महान, सोचने, लिखने,करने हेतु असल में एक अच्छा इंसान होना बेहद ज़रूरी होता हैं ............आपकी रचना आपके बारे में यूँ ही बहुत कुछ कह गयी .............

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    भिखारी मनोवृत्ति का ह्रास होना चाहिये पर अमानवीयता की कसौटी पर नही.

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  7. मन को छु गयी आपकी यह रचना .......... इंसान का इंसान से कोई नाता बाकी नहीं रह गया है आज के दौर मैं ......... सहज ही लिखा है आपने इतनी गहरी बात को ........

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  8. aap sabo ka dhero dhanyabaad main ek mahine bahar rahi isliye aap sabhi ke blog pe nahi aa saki mafi chahati hoon .

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