मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

कुछ ऐसे भी रिश्ते .होते .....

जाने क्या तुमसे रिश्ता है जो
कभी विरोध नही कर पाया मन ।
किस जन्म का साथ निभाने
आया , ये अन्तः मन का बंधन ।
उम्र सारी गुजर गई
एक अजनबी पहचान सी ,
फिर भी जिद्दी मन ये बोले
है नही आज का ये ,
है ये ,बरसो का बंधन ।
टीस उठी और आंखों में
आंसुओ का छाया घना सघन ।
ये मिलन जुदाई बनकर क्यो आई
क्यो तड़पे हर पल मन ।
इतने गहरे रिश्ते का
मध्यम सा है ,क्यो सावन ?
हम -तुम ढूंढ रहे जो मौसम
क्यो होता नही, उसका आगमन ।
उन बहार भरे रंगों के संग
झूमेगा ,किस दिन मन का आँगन ।
हलचल भरे ख्यालो में
उलझन भरे सवालों में ,
भारी होता जाये मन
बढ़ जाये दिल की धड़कन ।


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ये कुछ पंक्तियाँ डायरी से ली गई है ,इसलिए इस रचना को कविता के रूप में न ले क्योंकि लिखते वक्त कविता का रूप ले ली थी मगर लिखी गई थी दूसरे रूप में ,इस कारण एक दिन के लिए डाल रही हूँ । क्योकि साल गिरह है , इस अद्भुत रिश्ते का । और अपने ब्लॉग पर अंकित करने के उद्देश्य से भी ।

14 टिप्‍पणियां:

  1. Haan..aisa anubhav kayee baar aata hai..man samajh nahee pata ki, ye kis janam kaa rishta hai, na tode tootta hai, na nibhaye nibhta hai..

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  2. इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।

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  3. जाने क्या तुमसे रिश्ता है जो
    कभी विरोध नही कर पाया मन ।
    किस जन्म का साथ निभाने
    आया , ये अन्तः मन का बंधन ।
    उम्र सारी गुजर गई
    एक अजनबी पहचान सी ,
    फिर भी जिद्दी मन ये बोले
    है नही आज का ये ,
    है ये ,बरसो का बंधन ।

    हां मुझे लगता है जिस के दिल है, जिस की भावनाये जिंदा है उन सब को यह एहसास जरुर होता होगा... बहुत सुंदर कविता.
    आप हा धन्यवाद

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  4. रिश्ते मानो तो रिश्ते हैं ........... अक्सर रिश्ते दिल से बंधते हैं और लम्बे चलते हैं .............. रिश्तों का मर्म खोजती सुन्दर बात लिखी है आपने ..........

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  5. हलचल भरे ख्यालों में,
    उलझन भरे सवालों में,
    भारी होता जाये मन,
    बढ़ जाये दिल की धड़कन

    अबूझ भविष्य में संवेदनाओं की डांवाडोल होती अनुभूति को बहुत करीने से उकेरा है आपने........

    बधाई.

    सालगिरह किसकी, कुछ स्पष्ट न हो सका, इसीलिए कहना पड़ रहा है यथायोग्य बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  6. chanramohan ji shukriyaa saalgirah is adbhut bandhan ka .jo bana magar saath nahi hai .jise todkar bhi toda nahi gaya .ishwar ki aur se vardan swaroop mila .magar namumkin sa .

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  7. jyoti ji , aapko is adbhut rishte ki saal girah bahut bahut bahut mubarak, jiske karan hamen itni sunder adbhut rachnayen padhne ko mil rahi hain.

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  8. बधाई जी इस रिश्ते की साल्गिरह पर । देर से ही सही स्वीकार करें शुभकामनायें

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  9. Janam din kee badhayee ke liye tahe dil se shukriya!

    Rachna ne mano mere dil se alfaaz chheen liye! Nihayat sundar!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  10. kuch rishte aise hi hote hai .bdhai salgirh ki .
    kavita nhi hai fir bhi kvita hi ban pdi hai .bahut sundar
    abhar

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  11. shamaji,shobhana ji ,yogesh ji ,nirmala ji aap sabhi logo ki badhai ek khushi bhara paigam rahi .

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