शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

आपसी द्वेष

रिश्तों के आपसी द्वेष ,
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
घर के क्लेश से दीवार
चीख उठती है ,
नफरत इर्ष्या
दीमक की भांति ,
मन को खोखला करती है ,
ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है ।
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है ।

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इस रचना की और पंक्तियाँ है मगर लम्बी होने की वज़ह से नही डाली हूँ .





7 टिप्‍पणियां:

  1. पूरी कविता पढ़वा ना। वैसे बात तो बिल्कुल सही है रिश्तों के आपसी द्वेष ,
    परिवार का
    समीकरण ही बदल देते है ,

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  2. क़यामत का इन्तजार
    करती कटती है ।
    और विश्वास चिथड़े से
    लिपट सिसकियाँ भरती है ।
    आप ने एक बिखरते घर एक बिखरते देश का चित्र खींचा अपनी इस कविता मै. धन्यवाद

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  3. tanav poorn rishto ka badiya chitran kiya aapane. Pooree panktiya likhe isee aagrah ke sath

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