मंगलवार, 10 नवंबर 2009

मिटना -बनना

बहुत कुछ बिसार दिया

बहुत कुछ याद रक्खा ,

सहेजते -सहेजते

क्या कुछ गवा दिया ,

जो वक्त पकड़ सका

वो संभल गया ,

जो मन सह सका

वो पिघल गया ,

रेत की तरह

आहिस्ते -आहिस्ते

आज फिसल गया ,

और याद बनकर

अतीत ठहर गया

16 टिप्‍पणियां:

  1. Peechhe mudke dekhte hain,to mahsooos hota kya chhoot gaya, kuchh paya, kafee kuchh paneki kamname kafee kuchh chhoot bhi jata hai...aisehi ham mitte bigadte rahte hain..
    Aapki sabhi rachnayen sulajhi huee....anbhavse tarashe huee..hoti hain..

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  2. रेत की तरह
    आहिस्ते -आहिस्ते
    आज फिसल गया ,
    बहुत अच्छे भाव, इसी तरह बहुत कुछ पीछे छोड़कर हम आगे बढ़ते जाता हैं।

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  3. बहुत कुछ बिसार दिया
    बहुत कुछ याद रक्खा ,
    सहेजते -सहेजते
    क्या कुछ न गवा दिया ,
    बहुत सुंदर लिखा आप ने, बहुत गहरे भाव.

    धन्यवाद

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  4. bahut hee sunder rachana sashakt bhavo ko sahajata se darshatee kavita .... .bahut bahut badhai .
    Khatas par aapakee tippanee ka intzar hai .

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  5. आज फिसल गया ,
    और याद बनकर
    अतीत ठहर गया ।nice

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  6. ज़िन्दगी इसी तरह रेत की तरह फिसलती है, और यादों की गठरी में समा जाती है,बहुत बढिया

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  7. बहुत सुंदर याद बन कर अतीत ठहर गया,
    क्या ज्योति जी इतनी मुश्किल से बाहर आ पाती हूँ और आप हैं कि फिर वहीँ भेज देती हैं

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  8. bahut bahut shukriyaan aap sabhi ka .kshama ji main dhanya ho gayi jo aap phir se aai dil se aabhari hoon .

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  9. बहुत कुछ बिसार दिया
    बहुत कुछ याद रक्खा ,
    सहेजते -सहेजते
    क्या कुछ न गवा दिया ,
    जो वक्त पकड़ सका
    वो संभल गया ,
    जो मन न सह सका
    वो पिघल गया ,
    रेत की तरह
    आहिस्ते -आहिस्ते
    आज फिसल गया ,
    और याद बनकर
    अतीत ठहर गया ।

    बहुत सादगी और सरलता के साथ जिन्दगी की गहराई को नापती रचना ... बहुत सुन्दर.... बधाई

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  10. बहुत कुछ बिसार दिया
    बहुत कुछ याद रक्खा ,
    सहेजते -सहेजते
    क्या कुछ न गवा दिया ,
    बहुत गहरे भाव हैं.
    महावीर शर्मा

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  11. मोहतरमा ज्योति सिंह जी,
    विचारों की उथल पुथल के लिये उपयुक्त शब्दों का चयन किया है आपने.
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  12. shukriyaa mahavir ji,jaahid ji,devendra ji ,shahid ji .tahe dil se aabhari hoon

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