रविवार, 15 नवंबर 2009

नासूर

कुछ कांटे कुछ बातें

हर पल खटकते है ,

दिल को सोचने पर

जो मजबूर करते है

अगर समय पर इन्हे

नही निकाला जाए ,

तो जख्म इसके फिर

'नासूर 'हो जाते है

12 टिप्‍पणियां:

  1. तो जख्म इसके फिर
    'नासूर 'हो जाते है
    बहुत सुंदर लिखा आप ने,

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  2. नासूर बनने से पहले इन्हे निकाल लिया जाये तो अच्छा

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  3. तो जख्म इसके फिर
    'नासूर 'हो जाते है...

    KAMAAL KA LIKHA HAI .. KUCH JAKHM POORI UMR RISTE RAHTE HAIN ...

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  4. ज्योति जी ,
    साधारण शब्दों से असाधारण बात कही है .

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  5. तो जख्म इसके फिर
    'नासूर 'हो जाते है...
    वाह बहुत सुंदर पंक्तियाँ है! बिल्कुल सही कहा है आपने! इस ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई !

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  6. jyoti ji aap ki ek aur behtreen rachana.apni kavita ki kuch laine likh rahi hun jo vishesh kar baadal aur varsha par likhi hai
    dhanyvad
    जिगरे नासूर से रह-रह के रिसता ये बादल.
    ये बादल नहीं अवसाद है,किसी का
    जो मन को भिगोये,ये अहसास है उसी का

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