गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

मुमकिन .....

मेरी जिंदगी में

क्या हो तुम ,

ये शब्दों में

नही बाँधा

जा सकता

कागज़ पर

नही उतारा

जा सकता

ये शिरी -फरहाद

या लैला -मजनूँ

के किस्से नही ,

जिसे सरेआम

बयां कर दिया ,

उन्हें तो रास्ते

ही मिले

यहाँ तो रास्ते भी है

मंजिल भी

दिलो के गहरे

इरादे भी ,

तो देर किस बात की

चलो छू ले मंजिल ,

रास्ते तो यहाँ है सब

लगभग मुमकिन ही



12 टिप्‍पणियां:

  1. bahut din baad aaya aapke blog par, yakeen maaniye jitna chhootaa tha sab padhh liya...
    rachna ki antim pankti sarthak he..
    यहाँ तो रास्ते भी है
    मंजिल भी
    दिलो के गहरे
    इरादे भी ,
    तो देर किस बात की
    चलो छू ले मंजिल ,
    रास्ते तो यहाँ है सब
    लगभग मुमकिन ही ।

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  2. yahi panktian hain, bahut khoob.

    यहाँ तो रास्ते भी है
    मंजिल भी
    दिलो के गहरे
    इरादे भी ,
    तो देर किस बात की
    चलो छू ले मंजिल ,
    रास्ते तो यहाँ है सब
    लगभग मुमकिन ही ।

    wah.

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  3. yakeen par to duniya kayam hai ,iske aage gunjaaish hi nahi avishwaas ki ,aap jab bhi aaye yahan aapka dil se swagat hai ,afsos ki koi jagah nahi ,dhyaan rakhna hi kafi hai .man hamare saaf hai ,to phir kya baat hai .aapko bhav pasand aaye ,hum aabhari hai .dil ki baate hai shabd bhi kahan poori tarah bayan kar paate .

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  4. sakaratmakata liye pyaree rachana . irade buland hai to saaree kaynat sath dene me jut jaegee ,

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  5. ये हौसला कैसे झुके,
    ये आरज़ू कैसे रुके..
    बस इसी इरादे की तो ज़रूरत है..आमीन.

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  6. आपकी कविता अपनी आत्मीयता से पाठक को आकृष्ट कर लेती है।

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  7. तो देर किस बात की
    चलो छू ले मंजिल ,
    रास्ते तो यहाँ है सब
    लगभग मुमकिन ही
    क्या बात है ज्योति जी हर बार मेरे मन की बात कह डालती हैं. जरूर कुछ तो रिश्ता होगा हमारे बीच. शब्द हमेशा ही कम पड़ जाते है इस सुंदर अहसास को व्यक्त करने के लिए.अब अच्छा है ये कविता काम आ जायेगी जब मुहं से कुछ न बोलना हो

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  8. ये हौसला कैसे झुके,
    ये आरज़ू कैसे रुके..
    बस इसी इरादे की तो ज़रूरत है..आमीन.

    लगभग मुमकिन नामुंमकिन जैसा हो जाता है ।

    हर बार आप सहजता से कह जाती हैं ।

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  9. यहाँ तो रास्ते भी है
    मंजिल भी
    दिलो के गहरे
    इरादे भी ,
    तो देर किस बात की
    चलो छू ले मंजिल ,
    रास्ते तो यहाँ है सब
    लगभग मुमकिन ही...

    कई बार शब्दों में बाँधना बहुत मुश्किल होता है .......... वैसे रिश्तों को शब्दों में बाँधने की ज़रूरत भी क्या है ...... सफ़र में चलते रहना ही ठीक है ..... बहुत अच्छी रचना है ........

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