रविवार, 13 दिसंबर 2009

फिर वही राह

एक नई रौशनी के साथ

हर सुबह जागती है ,

दिल में , फिर कोई उम्मीद

अपनी जगह बनाती है ,

शायद, दिन ढलते -ढलते

यकीं दस्तक दे जाये ,

इन्ही खयालो की दास्ताँ

हर लम्हा बुनती है ,

आहिस्ता -आहिस्ता

रात के ढलने के साथ ,

एक बार फिर टूटती है

भाग्य की रेखा के साथ

नया आसरा ढूंढती हुई ,

लकीरों से समझौता कर

फिर वही राह पकड़ लेती है

13 टिप्‍पणियां:

  1. इस उम्मीद पर ही तो जीवन चलता है ......... नयी सुबह की इंतेज़ार हर कोई करता है ...... अच्छी रचना ..........

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  2. Har kisee ke liye dua karungi,ki, ek nayee raushnee ke saath subah jage!

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  3. भाग्य की रेखा के साथ
    नया आसरा ढूंढती हुई ,
    लकीरों से समझौता कर
    फिर वही राह पकड़ लेती है ।

    जीवन की अभिव्यक्ति का सच।

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  5. यह जीवन आशा और निराशा के द्वन्द्व का ही दूसरा नाम है ।

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  6. बधाई स्वीकारें बहुत सुंदर एक आशावादी कविता के लिए. अपनी एक कविता "सुबह" की पहली और अंतिम पंक्तिया लिख रही हूँ

    हर शाम एक उम्मीद जगती है
    हर रात एक सपना देखा जाता है
    यूँ ही एक ना उम्मीद सांझ, रात के बाद
    एक महफूज़ सी सुबह निकलती है

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  7. shukriyaan aap sabhi ka jo aakar hausala badhaya ,iske liye tahe dil se aabhari hoon

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