गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

दिल ........

दिल का क्या

चाँद पे जाना चाहता है ,

दिल की क्या कहे

आसमान छूना चाहता है ,

दिल तो है

अस्थिर खयालो से भरा ,

कुछ पाना तो

कुछ खोना भी चाहता है ,

दिल तो दिल है

डोल भवर में जाता है ,

भाग्य -वक़्त के आगे

बेबस सा हो जाता है ,

फूलो सा नाजुक

लहरों सा चंचल ,

बेचारा दिल ये

बेबस सा रह जाता है ,

दिल तो आखिर दिल है

उलझन में पड़ जाता है

8 टिप्‍पणियां:

  1. दिल ने गर बात अपनी मानी होती
    तो आज ना यहाँ ब्लॉग पे हमारी
    कहानी होती..
    हम मना लेते अपने दिल को हर दुःख में
    हर ख़ुशी ना हम से रूठ के बेगानी होती.

    ज्योति जी आपकी ये रचना मन को मोह गयी.
    बहुत खूब. बधाई.

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  2. दिल तो है दिल
    दिल का ऐतबार
    क्या कीजै ........!!

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  3. दिल तो है दिल ......... दिल का ऐतबार क्या कीजे .........

    पर अगर ये दिल न हो तो सपने कैसे होंगे ........ जीवन कैसे होगा ....... सुंदर रचना है .........

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  4. aap sabhi ki aabhari hoon ,anamika ji ,harkirat ji ,swapn ji ,apanatva ji aur digambar ji ,shukriya shamil hone ke liye

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  5. dil to hai dil dil ka aitbaar kya kiije....

    khoobsurat khayal acchi adaygii
    daad kubool karen

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  6. ज्योति जी देर से आने के लिए क्षमा, दिल है तो कुछ न कुछ चाहेगा ही,दिल ही की दुनिया है,जिस दिन दिल बस में हो जाए फिर क्या बात हो
    नव वर्ष पर आप व् आपके परिवार को हार्दिक बधाई

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