मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

ख्याल जुदाई का ....

वो मंजर जितना हसीं

उतना ही गमगीन होगा ,

जब हम हाथ छुड़ाके

दिल में होकर भी ,

दूरी नाप रहे होंगे ,

एक पल नजदीक

और एक पल दूर

खींचते हुए हमें ,

अनचाहे राह पर

खड़े किये होगा ,

हम हालात में कैद

अपनी मर्जी बांधे होंगे ,

चाहते हुए भी

एक दूजे को ,

विदा करते होंगे ,

डबडबाती आँखों में

आंसुओं को सँभालते हुए ,

हाथ हिलाते - हिलाते

अचानक ओझल हो जायेंगे

अपने -अपने रास्ते मुडकर

यही ख्याल लिए बढ़ते होंगे ,

कल मिलेंगे भी कि नहीं

ये जुदाई उम्र कैद तो नहीं


10 टिप्‍पणियां:

  1. डरा देता है ख्याल जुदाई का, बहुत अच्छी कविता कही आप ने, धन्यवाद

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  3. सरलता और सहजता का अद्भुत सम्मिश्रण बरबस मन को आकृष्ट करता है। बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  4. आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  5. बहुत भाव भीनी कविता मन को भिगो गयी
    नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कामना के साथ
    सादर

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  6. जुदाई उम्र कैद ?

    या अविचल निहारती आँखों का अवदान ?

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  7. बहुत अच्छी कविता कही आप ने, धन्यवाद

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