मन की वापसी
जब -जब छलनी हुआ मन
दर्द से भरा मेरा ये दामन ,
फिर भी खुद को बहलाती रही
गुजरे वक़्त को समझाती रही ,
तू आज मेरा न सही
कल तो होगा कभी ,
पर आंसू से वो उठी टीस
उम्मीद भी टूटी कहीं ,
आह चीखी -दुख हुआ
पर मौन हो ,सिसकती रही
जिस पर चलने की
मेरी कोशिश रही ,
शायद ये रास्ते मेरे नहीं ,
वापस मन को शून्य कर
परिधि में चक्कर लगाती रही ।
टिप्पणियाँ
fir dilko choo gaee aapkee rachana ........
बधाई
अपरिमित फैलाव परिधियों का हो फिर भी मन शून्य .
सुन्दर मनभाव !
bahut dino se koi rachana nahee.....?
tabiyat to theek hai na....................?
with best wishes..................
SUNDAR BHAVPOORN RACHNA.