धूल में सने हाथ
कीचड़ से धूले पाँव ,
चेहरे पर बिखरे से बाल
धब्बे से भरा हुआ चाँद ,
वसन से झांकता हुआ बदन
पेट ,पीठ में कर रहा गमन ,
रुपया ,दो रुपया के लिए
गिड़गिडाता हुआ बच्चा -फकीर ,
मौसम की मार से बचने के लिए
ढूँढ रहा है अपने लिए आसरा
सड़क के आजू -बाजू ,
भूख से व्याकुल होता हाल
नैवेद्य की आस में बढ़ता पात्र ।
ये है सुनहरा चमन
वाह रे मेरा प्यारा वतन ।
अपने स्वार्थ में होकर अँधा
क्या खूब करा रहा भारत दर्शन ।
"जहां डाल -डाल पे सोने की
चिड़ियाँ करती रही बसेरा "
बसा नही क्यों फिर से
वो भारत देश अब मेरा ।
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