हिन्दुस्तान ....
हर मजहब से यहाँ मोहब्बत निभाते देखा
हर दिलो में यहाँ हिन्दुस्तान मुस्कुराते देखा ।
एक तिरंगा लहराता है सबके दिलो में
भेदभाव से हो जुदा हिन्दुस्तान पलते देखा ।
'मिले सुर मेरा तुम्हारा ,तो सुर बने हमारा '
यही गीत तो जुबां-जुबां पे गुनगुनाते देखा ।
'सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा '
हर दिलो में अहसास यही गूंजते देखा ।
'परहित सरस धर्म नहीं भाई '
मानवता से बढ़कर रिश्ता नहीं देखा ।
की इबादत हमने अक्सर यहाँ इंसानियत की
'जय हिंद 'के नारे में नफरत मिटाते देखा ।
हर दिलो में ही ईमान जगमगाते देखा
कदम -कदम पर हिन्दुस्तान मुस्कुराते देखा ।
है हल्की सी बस एक धुंध ही यहाँ
धूप के आते ही कोहरा छटते देखा ।
है आकाश सारा और धरती जिसकी
सारे जहां में दूजा हिन्दुस्तान नहीं देखा ।
टिप्पणियाँ
की इबादत.........
जयहिंद के नारे में नफरत मिटाते देखा..
सच कहा आपने..
वतन के लिये हम सब एक हैं
ise khte hai desh prem ka jajba .aaj ke is mahoul me bhi skaratmk vichar hi nek insan banne ki prerna dete hai .bahut badhiya abhivykti .
jay bhart
mirza ji aapke aadaab me hajaro aaftaab raushan ho rahe hai aur blog ko jagmaga rahe hai ,sach kaha aapne vatan ke liye hum ek hai .kaale ,gore ka bhed nahi ,har dil se hamara nata hai ,hai preet jaha ki reet ....
sach desh-prem se bhari aapki kavita..hriday mein ek lahar utha gayi..
aapki lekhni ka naman..
bahut sundar..
badhaii..
है ही नहीं हिन्दुस्तान सा दूजा कोई
नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
saare jahaan se achchha hindostan hamara
mazhab nahin sikhata aapas men bair rakhna
hindi hain ham watan hai hindostan hamara
badhai ho