मुझे चाहिए फिर बचपन ....
फिर नया जन्म होगा
फिर सुनहरा आएगा बचपन ,
इन द्वन्दो-प्रतिद्वंदो से
रहेगा फिर अछूता मन ।
बड़ा होना व्यर्थ है ,
समझदारी अनर्थ है ,
जीवन की उलझनों पर ,
छलता रहता मासूम मन ।
बड़ा भी होकर इंसान
सिसकता रहा हर क्षण ,
जीवन के दलदल में
धसता जाता कण -कण ।
बच्चा ही बना रहे इंसान ,
ऊँच- नीच से रहे अन्जान ,
नही भली इसके आगे की उम्र
भेदभाव पनपते यहाँ हरदम ।
नही चाहिए और ये जीवन
जहां आतंकित रहे ये मन ,
कैसे देखे ?मासूम निर्दोषो को
छलनी होते हुए ये मन ।
करनी किसकी भरनी किसकी
मानवता का हो रहा हनन ,
नही चाहिए और ये जीवन
मुझे चाहिए फिर वही बचपन ।
टिप्पणियाँ
मानवता का हो रहा हनन....
मुझे चाहिये फिर वही बचपन
.....वाह...बहुत खूब
समझदारी अनर्थ है ,
.
.
.
नही चाहिए और ये जीवन
मुझे चाहिए फिर वही बचपन ।
बचपन तो चाहिए
बड़प्पन को कैसे भुलाए हम
जो समय बीत गया
उसे कैसे बुलाए हम,
बहूत अच्छी रचना...
कुंवर जी,
बड़ा होना व्यर्थ है
समझदारी अनर्थ है!
कितना सटीक लिखा है..मन के भावों की सशक्त भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
poonam
ऊँच- नीच से रहे अन्जान ,
नही भली इसके आगे की उम्र
भेदभाव पनपते यहाँ हरदम ।
नही चाहिए और ये जीवन
जहां आतंकित रहे ये मन ,
कैसे देखे ?मासूम निर्दोषो को
छलनी होते हुए ये मन ।
करनी किसकी भरनी किसकी
मानवता का हो रहा हनन ,
नही चाहिए और ये जीवन
मुझे चाहिए फिर वही बचपन ।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ,काश बचपन लौट आए
ek achhee...maasoom...bhaavpoorn
rachnaa
आती है मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया तू बचपन की
सबसे मस्त ख़ुशी मेरी .....
सच में बचपन कितना सच्चा होता है न....?
Jai Hind...
bachpan ki yaden jati nahin dil se
bachpan ki masoomiyat ko khatm hote dekhte hain ham aur sochte hain wo bada ho gaya , bada hone ke sath usmen kya kuchh bhar gaya pata hi nahin chalta.
koi laouta de mere beete huye din ...
par aaj to bachpan ki masumiyat bhi khoti ja rahi hai
bahut achi rachna .
- विजय तिवारी ' किसलय '
Badhai