पहचान ......
मेरा वास्ता इंसानियत से रहा
अहम से नही ,
मैं साधारण ही रहना चाहती
बड़े होने की ख्वाहिश
कतई नही ,
मेरी नजरों ने कितने ही
नाम वालों के चेहरे पढ़े ,
जो पहचान अपनी
अब भी ढूँढ रहे है ।
शोहरत की सोहबत में
वजूद ही कही उनके ,
गुमनाम से हो गये ।
अनगिनत रिश्तों में भी
तन्हाई है रौंद रही ,
क्योंकि उनकी तलाश
मंजिल के आगे भी है ,
किसी उस शक्स की
जो नाम से नही
पहचान कायम करे ,
बल्कि इंसानियत की
नींव बनाये ।
टिप्पणियाँ
क्योंकि उनकी तलाश
मंजिल के आगे भी है ,
किसी उस शक्स की
जो नाम से नही
पहचान कायम करे ,
बल्कि इंसानियत की
नींव बनाये ।
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
tareef ke liye..
अहम से नही ,
मैं साधारण ही रहना चाहती
बड़े होने की ख्वाहिश
कतई नही ,
वाह ज्योति जी आप की यह रचना दिल को छू गई.
धन्यवाद
achhi rachna.
badhayi.