भोर
भोर की किरण फूटी
हिम -कणों में चमक आई ,
कलियाँ लहर -लहर लहराई
लक्ष्य सुलक्षित हुआ ,
मंजिल भी आगे चली
अँधेरी राहो से घिरी मैं
दिल को जगमगाती चली ।
कंटीली राहो को ,
पारकर आगे बढ़ी
मिले कजा तो कजा पर भी
मुस्कुरा कर चली ,
ज़माना याद करे ऐसे
गुल खिलाकर चली ।
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यह रचना तबकी है जब मैं बनस्थली विद्यापीठ में आठवी कक्षा में पढ़ती रही और इसे वहां 9th में" महकती कलियाँ " नामक एक काव्य संग्रह में प्रकशित किया गया रहा । जो मित्र वहां से जुड़े रहे वो भलीभांति जानते होंगे । अल्पना जी आप के कारण ख़ास तौर पर डाला क्योंकि आप भी उस संस्था से कुछ वर्ष जुडी रही ,ये पुरानी यादों का एक हिस्सा है जो रचना कम अहसास ज्यादा समेटे हुए है ।
टिप्पणियाँ
हिम -कणों में चमक आई ,
कलियाँ लहर -लहर लहराई
लक्ष्य सुलक्षित हुआ ,
MUMMY JI MUGHE TO BAHUT PASAND AAI RACHNAA
ekdam tarotazaa kar dene walee ........
धन्यवाद
मुस्कुरा कर चली ,
ज़माना याद करे ऐसे
गुल खिलाकर चली ।
ज्योति जी बहुत सुन्दर रचना कोमल भावनाओं से भरी
अंधेरी राहों से घिरी मैं...दिल को जगमगाती चली..
ज्योति जी,
बहुत प्रभावशाली है आपका सकारात्मक लेखन.
बधाई.
हिम -कणों में चमक आई ,
कलियाँ लहर -लहर लहराई
लक्ष्य सुलक्षित हुआ
बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति है ज्योति जी .
प्रेरक कविता के लिए बधाई.
आप ने मुझे याद किया..हाँ जब एक ही संस्था से जुड़े होते हैं तो आपस में एक ख़ास लगाव हो जाता है.
आप की कविता बहुत अच्छी लगी ..ऐसे ही पुरानी यादों को खंगालते रहीये..
[मैं ने तो अपनी कई कवितायेँ [प्रकाशित कविताओं कि मूल प्रति भी]पत्रकारिता के प्रोजेक्ट में लगा दी थीं..तब मालूम नहीं था कि वापस नहीं मिल पायेगा..खो गयीं..इतनी समझ नहीं थी कि उन्हें कॉपी कर के या संभाल कर रखती.
आप ने सब संभाल कर रखी हैं,,,सच कमाल है!