दुर्दशा .........
धूल में सने हाथ
कीचड़ से धूले पाँव ,
चेहरे पर बिखरे से बाल
धब्बे से भरा हुआ चाँद ,
वसन से झांकता हुआ बदन
पेट ,पीठ में कर रहा गमन ,
रुपया ,दो रुपया के लिए
गिड़गिडाता हुआ बच्चा -फकीर ,
मौसम की मार से बचने के लिए
आसरा सड़क के आजू -बाजू ,
भूख से व्याकुल होता हाल
नैवेद्य की आस में बढ़ता पात्र ।
ये है सुनहरा चमन
वाह रे मेरा प्यारा वतन ।
अपने स्वार्थ में होकर अँधा
करा रहा भारत दर्शन ।
"जहां डाल -डाल पे सोने की
चिड़ियाँ करती रही बसेरा "
बसा नही क्यों फिर से
वो भारत देश अब मेरा ।
टिप्पणियाँ
बसा नही क्यों फिर से वो भारत देश अब मेरा....
ज्योति जी, ये समय भी बदलेगा, और फिर से ये देश सोने की चिड़िया बनेगा....विश्वास रखिये.
सुन्दर....रचना.
मार्मिक चित्रण ,
ये समस्याएं व्यवस्था के कारण हैं ,लेकिन आज भी हमारा वतन जितनी सुंदरताओं ,ख़ूबियों और विविधताओं के साथ संसार के सामने सर उठा कर खड़ा है ये मामूली बात नहीं
Aapki kayi rachnayen dobara padhne ka man karta hai...