रकीबो से उल्फत..........
रकीबो से रस्मे उल्फत निभाता कहाँ कोई है
यहाँ शौक ऐसे दिल से फरमाता कहाँ कोई है ।
है , ये वो शै बाजारों में भीड़ है जिसकी
मुफ्त में मिलने से भी अपनाता कहाँ कोई है ।
मगर सबसे ज्यादा यही रस्मे उल्फत निभाती है
मोहब्बत से भी आगे बाजी दुश्मनी मार जाती है ।
दुश्मनों की हयात में चाहत नही होती कभी
है इसमें वो अदा जो ठिकाना आप जमा लेती है ।
चाहे जितनी भी कर ले हिफाजत हम अपनी
हर पहरे तोड़कर दास्तां अपनी गढ़ जाती है ।
यहाँ शौक ऐसे दिल से फरमाता कहाँ कोई है ।
है , ये वो शै बाजारों में भीड़ है जिसकी
मुफ्त में मिलने से भी अपनाता कहाँ कोई है ।
मगर सबसे ज्यादा यही रस्मे उल्फत निभाती है
मोहब्बत से भी आगे बाजी दुश्मनी मार जाती है ।
दुश्मनों की हयात में चाहत नही होती कभी
है इसमें वो अदा जो ठिकाना आप जमा लेती है ।
चाहे जितनी भी कर ले हिफाजत हम अपनी
हर पहरे तोड़कर दास्तां अपनी गढ़ जाती है ।
टिप्पणियाँ
हर पहरे तोड़कर दास्तां अपनी गढ़ जाती है ।
बहुत सुंदर जी.
धन्यवाद
sunder rachana........
चाहे जितनी भी कर ले हिफाजत हम अपनी
हर पहरे तोड़कर दास्तां अपनी गढ़ जाती है ।
bahut khoob
मोहब्बत से भी आगे बाजी दुश्मनी मार जाती है ।
क्या बात है ज्योति जी आज कुछ अलग सी बात
बेमिसाल, हर शेर काबिले तारीफ़ और वज़नदार. दाद कुबूल करें
यहाँ शौक ऐसे दिल से फरमाता कहाँ कोई है
सच कहा है ... दुश्मनों से दोस्ती कोई नहीं करता ... अछे शेर कहे है ...
हर पहरे तोड़कर दास्तां अपनी गढ़ जाती है ।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
hindi ke sath urdu me bhee mahirath hasil hai.........
sunder rachana......
aabhar
मोहब्बत से भी आगे बाजी दुश्मनी मार जाती है ।
बहुत खूब ...जिन्दगी के अनुभव से निकली पंक्तियाँ
मगर सबसे ज्यादा यही रस्मे उल्फत निभाती है
मोहब्बत से भी आगे बाजी दुश्मनी मार जाती है ।
lajvab