गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

आप ही है ......

बदला हुआ सुर देखकर

हैरान इस कदर होइये ,

अपने कैसे हो जाते पराये

अब और साबित मत कीजिये

दिल की नज़रो से नही

दिमाग की नजरो से देखिये

यहाँ जो दिखता है वो बिकता है

गूंगे को अब कोई ,साधू नही समझता है

बात अपनी मनवाना , है जो जनाब

घूमा फिरा के नही ,सीधे -सीधे बोलिये

अब ज़माना किसी को दोष देने का नही

आप ही है जगन्नाथ ,बस यही समझ लीजिये

12 टिप्‍पणियां:

  1. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  2. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

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  3. sahee likha hai aapne ..........

    दिल की नज़रो से नही
    दिमाग की नजरो से देखिये ।

    har jagah bhavuk hone se kaam nahee chalta.......
    satark rahana lazmee hai.........:)

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  4. आदरणीया
    बहुत सुन्दर रचना ........आभार !

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  5. बहुत बहुत बहुत ही बढिया ,आत्म निर्भर बनो किसी को दोष न दो आज कल यही सब हो रहा है ।यह बात भी सही है कि लोग घुमाफ़िरा कर बाते करते है मगर अपनी बात मनवाना है तो जायज माग के लिये तो सीधे कहा जा सकता है मगर ऐसे लगे कि हम नाजायज माग मनवाना चाह्ते है तो घुमाना फ़िराना पड्ता है (टिप्पनी बडी होने से डर रहा हूं) कैकैई ने सीधे सीधे बोला "" देहु एक वर भरतहिं टीका ""लेकिन दूसरा वर कैसे मांगा =मांगहुं दूसर वर कर जोरी /पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी ।आप ही जगन्नाथ पर से सागर साहिब का शेर याद आया "सागर खुद अपनी राह बना कर निकल चलो /वरना यहां पे किसने किसे रास्ता दिया ""कविता बहुत अच्छी लगी

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  6. आप ही जग्गण नाथ .... सच है ... किसी को दोष नही दिया जा सकता .. देना भी नही चाहिए ...

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  7. अब ज़माना किसी को दोष देने का नही
    आप ही है जगन्नाथ ,बस यही समझ लीजिये ।
    बहुत लाजवाब,हर इक बात बहुत गहरी.इतनी बेहतरीन बहुत लाजवाब,हर इक बात बहुत गहरी.इतनी बेहतरीन प्रस्तुती के लिए आभार

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  8. आज के ज़माने का सच बताती अच्छी रचना ..

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  9. बहुत खूबसूरत शब्दों से रची गई कृति...बधाई.

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